Atreya


Friday, December 24, 2010

सारगर्भित उत्तर से मिलेगी सफलता


सारगर्भित उत्तर से मिलेगी सफलता समाज में प्रोफेसर और लेक्चरर को काफी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद पद के साथ-साथ सैलरी भी काफी हो गई है। यही कारण है कि यूजीसी परीक्षा में काफी संख्या में स्टूडेंट्स बैठने लगे हैं। यूजीसी जेआरएफ और नेट की परीक्षा 26 दिसंबर को होनी है। इसके लिए आप तैयारी को अंतिम रूप देने में जुट गए होंगे। इसमें सफलता उन्हीं स्टूडेंट्स के हाथ लगेगी, जो काफी कठिन मेहनत करने के साथ ही व्यावहारिक सोच भी रखते हैं। यदि आप भी इस परीक्षा के लिए आवेदन कर चुके हैं और इसकी तैयारी में जुटे हैं, तो हम आपके लिए कुछ खास स्ट्रेटेजी बता रहे हैं, जिससे आप इस बचे हुए समय में बेहतर तैयारी करने में सफल हो सकें। सबसे पहले अपना टारगेट फिक्स करें। अब समय काफी कम हैं। इसलिए ऐसा टारगेट बनाना जरूरी हो जाता है। क्वालिफाइंग पेपर के लिए पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन तथा समसामयिक मुद्दों व घटनाओं से संबंधित तथ्यों का संकलन क्वालीफाइंग की शर्त को आसान बना सकता है।
 
समय का बंटवारा जरूरी
इसके लिए चार सौ अंकों की लिखित परीक्षा दो चरणों में होगी। इसमें तीन प्रश्नपत्र होंगे। पहला प्रश्नपत्र सामान्य स्तर का होगा। इस पेपर का मुख्य उद्देश्य परीक्षार्थी की शिक्षण एवं शोध क्षमता की जानकारी करना है। इसके साथ ही इसके अंतर्गत रीजनिंग एबिलिटी, कॉम्प्रिहेंसन, डाइवरजेंट थिंकिंग ऐंड जनरल अवेयरनेस से संबंधित प्रश्न पूछे जाएंगे। यह पेपर सभी अभ्यर्थियों के लिए अनिवार्य होगा तथा इसके लिए सौ अंक तथा सवा घंटा निर्धारित है। आपके लिए जरूरी है कि तैयारी के समय ही उसके महत्व के अनुसार पढाई करें। इसके लिए यदि आप अभी से सिर्फ एक घंटा का अभ्यास करते हैं, तो इस विषय की तैयारी के लिए काफी है। आपके लिए जरूरी है कि आप अभी इस पर अमल करना शुरू कर दें। इसी तरह द्वितीय प्रश्नपत्र में अभ्यर्थी द्वारा चुने गए विषय से संबंधित 50 वस्तुनिष्ठ प्रश्न होते हैं। इसके लिए भी सौ अंक तथा समय सवा घंटा है। आप किसी संबंधित गाइड से विषय से संबंधित प्रश्नों की तैयारी के लिए भी समय निर्धारित कर लें।
 
गहन अध्ययन जरूरी
तीसरा और दूसरा प्रश्नपत्र काफी अहम होता है और इसी विषय में परफॉरमेंस के आधार पर आपका चयन काफी हद तक निर्धारित होता है। जैसा कि आप जानते हैं कि तीसरा प्रश्नपत्र अभ्यर्थी द्वारा चुने गए विषय से संबंधित होता है, जिसके प्रश्न डिस्क्रिप्टिव टाइप के होंगे। इसके लिए कुल दो सौ अंक तथा ढाई घंटे रखे गए हैं। मेधा सूची निर्धारित करने वाले पेपर-दो की तैयारी के लिए संपूर्ण सिलेबस का अध्ययन आवश्यक है। साथ ही, इसकी तैयारी के सिलेबस के अनुसार वन लाइनर तथ्यात्मक नोट्स बनाना सफलता के काफी करीब पहुंचा सकता है। किसी भी परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए आपको सौ फीसदी प्रदर्शन करना ही होगा। यदि आप भी इस परीक्षा में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो अभी से बनाई गई योजना को पूरा करने के लिए जी जान से जुट जाएं। आप इस बीच पांच वर्षो के प्रश्नों को देखकर यह अंदाजा लगाकर वस्तुनिष्ठ और डिसक्रिप्टिव उत्तर लिखने का अभ्यास कर सकते हैं। इसके साथ ही इस विषय में आपकी भाषा शैली और लिखने का स्टाइल देखा जाता है। आपके लिए बेहतर होगा कि आप आदर्श उत्तर लिखने का अभ्यास करें। यदि आपके आसपास सीनियर्स हैं, तो इसमें आप उनकी भी मदद ले सकते हैं। इसके अलावा आप संबंधित विषय से संभावित प्रश्नों की एक सूची भी बना सकते हैं। इस तरह की सूची बनाने में पिछले दस वर्षो के प्रश्नों का अध्ययन काफी लाभ पहुंचा सकता है।
 
कैसे लिखें बेहतर उत्तर
परीक्षा के लिए बहुत कम समय बचा है। इस कारण आप यह सुनिश्चित कर लें कि आप किस सेक्शन से दीर्घ उत्तर लिखेंगे। इस परीक्षा में दो प्रश्न लॉन्ग होंगे, जिसके लिए 40 अंक निर्धारित हैं। इस कारण इसकी तैयारी के लिए पहले से रणनीति बनाना जरूरी है। आप क्रिटिकल और एनालिटिकल उत्तर लिखेंगे, तो अच्छे मा‌र्क्स प्राप्त कर सकते हैं। यह तभी संभव हो पाएगा, जब आप इस तरह के उत्तर लिखने का अभ्यास करेंगे। इसके अलावा इस परीक्षा में 50 शब्दों के उत्तरों की संख्या अधिक होती है। इस कारण यह स्कोरिंग माना जाता है। आप निर्धारित समय-सीमा के अंदर प्रश्नों को लिखने का खूब अभ्यास कर सकते हैं। अच्छे अंक तभी प्राप्त कर सकते हैं, जब आपका उत्तर साफ और सही हो। विशेषज्ञों का मानना है कि कोई भी एग्जामनर सभी प्रश्नों का उत्तर नहीं पढता है, लेकिन सभी प्रश्नों के उत्तर का इंट्रोडक्शन और अंत में मूल्यांकन अवश्य देखता है। यदि आप इंट्रोडक्शन में ही उत्तर से संबंधित महत्वपूर्ण टॉपिक्स लिखते हैं और अंत में उसका सारांश कम शब्दों में बेहतर तरीके से लिखने में सफल होते हैं, तो आप परीक्षा में बेहतर कर सकते हैं।
विजय झा ( दैनिक जागरण )

Saturday, December 11, 2010

चार्टर्ड अकाउंटेंट इंतजार में हैं नौकरियां

सेंट्रल बैंक में सुनहरा अवसर.


  सीए एक प्रतिष्ठा का जॉब है। इसमें वह सब कुछ है, जो आज का स्टूडेंट्स नौकरी के साथ चाहता है। यही कारण है कि कॉमर्स स्ट्रीम के स्टूडेंट्स इसे प्राथमिकता की सूची में शिखर पर रखते हैं। वेतन के मामले में यह एमबीए से किसी भी सूरत में पीछे नहीं है। अकाउंटिंग का मास्टर कहे जाने वाले इस प्रोफेशनल की पहुंच सभी क्षेत्रों में होती है, इसलिए हर कंपनी इन्हें अपने यहां जॉब पर रखना चाहती है और हर युवा इस कोर्स को करना चाहता है। युवाओं के रुझान का पता इसी से लगाया जा सकता है कि सन 2007 में जहां 2.7 लाख स्टूडेंट्स इसके एग्जाम में शामिल हुए थे, वहीं यह संख्या 2010 में 7.65 लाख हो गई। यदि आप भी सीए बनकर पैसे के साथ समाज में प्रतिष्ठा पाना चाहते हैं, तो यह प्रोफेशन सबसे उपयुक्त साबित हो सकता है।
 

क्यों है महत्वपूर्ण
अर्थव्यवस्था के विकास में इनका अहम रोल होता है। इसके महत्व का आकलन इसी से लगाया जा सकता है कि अब सीए की पहुंच आईटी सेक्टर के अलावा फाइनेंस, रिस्क ऐंड इंश्योरेंस सर्विस में भी हो गई है। इनकी बढती भूमिका को देखते हुए ही सीए को कंप्लीट बिजनेस सॉल्यूशन प्रोवाइडर कहा जाता है। किसी कंपनी या बिजनेस को कैसे चलाया जाना चाहिए, इसका प्रबंधन, कानूनी और व्यावसायिक पहलू, योजना और रणनीति, इन सब कामों के लिए सीए की जरूरत पड रही है।
 

सीए ही क्यों
सीआईआरसी के ट्रेजरार और सीए मनु अग्रवाल कहते हैं कि आप लो प्रोफाइल परिवार से हैं या किसी अमीर परिवार से, अगर मेहनत करने की क्षमता रखते हैं तो सीए के रूप में कामयाब हो सकते हैं। यह ऐसा क्षेत्र हैं, जो गरीब और अमीर, दोनों वर्ग के युवाओं को अपने यहां आने का मौका देता है। ग्रामीण हो चाहें शहरी, दोनों जगहों के छात्र यहां अपनी जगह बना सकते हैं। इसकी पढाई की फीस अन्य प्रोफेशनल कोर्स के मुकाबले बहुत कम रखी गई है, लेकिन सीए का करियर किसी भी प्रोफेशन से किसी भी मामले में कम नहीं है। इसके अलावा इस कोर्स की सबसे बडी खासियत यह है कि इसमें कोई बेरोजगार नहीं रहता है और इसे घर बैठकर भी किया जा सकता है। इसमें सैलरी भी काफी होती है। सीए के अगस्त-सितंबर 2010 के कैंपस प्लेसमेंट में तोलाराम कॉरपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड ने तीन स्टूडेंट्स को 21-21 लाख रुपये प्रतिवर्ष दिए थे।


 
चार्टर्ड अकाउंटेंट इंतजार में हैं नौकरियां 














क्या है सीए
सीए संसदीय अधिनियम द्वारा पारित कोर्स है। इसमें रेगुलर क्लास की अनिवार्यता नहीं है। देश में चार्टर्ड अकाउंटेंसी का कोर्स सन 1949 में शुरू किया गया था। यह एक प्रोफेशनल कोर्स है,जिसे चलाने के लिए द चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफ इंडिया का गठन किया गया, जिसका कार्य पाठ्यक्रम चलाने की जिम्मेदारी के साथ चार्टर्ड अकाउंटेंसी का एग्जाम कराना तथा प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस जारी करना है।
चार्टर्ड अकाउंटेंसी परीक्षा प्रोग्राम
किस तरह की परीक्षा
चार्टर्ड अकाउंटेंसी प्रोग्राम के तीन पार्ट हैं।
कॉमन प्रोफिशिएंसी टेस्ट (सीपीटी)
इंट्रीग्रेटेड प्रोफे शनल कम्पीटेंस कोर्स (आईपीसीसी)
सीए फाइनल।
 

सीपीटी
कॉमन प्रोफेशिएंसी टेस्ट में दो सेशन होते हैं, प्रत्येक सेशन 100 नम्बर का है और हर सेशन में दो सेक्शन होते है। प्रत्येक सेशन के लिए दो घंटे का समय निर्धारित है। प्रश्न ऑब्जेक्टिव ही पूछे जाते हैं तथा मार्किग निगेटिव होती है। सेशन एक के सेक्शन ए में फंडामेंटल ऑफ अकाउंट 60 नंबर का एवं मार्के टाइल लॉ से 40 नम्बर के प्रश्न होते हैं। सेशन द्वितीय के सेक्शन सी एवं डी से जनरल इकोनॉमिक्स 50 नम्बर तथा क्वांटेटिव एप्टीट्यूड से 50 नम्बर के प्रश्न पूछे जाते हैं। पहले सिर्फ बारहवीं पास स्टूडेंट्स को ही इस तरह की परीक्षा देने की अनिवार्यता थी, लेकिन अब सभी स्टूडेंट्स के लिए अनिवार्य है।
 

आईपीसीसी
आईपीसीसी के विषयों को दो समूहों में विभाजित किया गया है। आईपीसीसी परीक्षा के माध्यम से बिजनेस स्ट्रेटेजी, टैक्सेस इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी और ऑडिट के साथ बिजनेस कम्युनिकेशन ज्ञान को भी परखा जाता है। इसके अंतर्गत दो ग्रुप होते हैं। आप चाहें तो दोनों ग्रुप एक साथ दे सकते हैं या एक-एक ग्रुप अलग-अलग दे सकते हैं। आईपीसीसी का एक ग्रुप पास करने के बाद आप आर्टिकलशिप के लिए योग्य जाते हैं। आप चाहें, तो किसी सीए फर्म में आर्टिकलशिप ज्वाइन कर सकते हैं। कहने का आशय यह है कि तीन वर्ष की आर्टिकलशिप ट्रेनिंग करने के बाद ही आप फाइनल परीक्षा में बैठने के लिए योग्य हो सकते हैं।
 

सीए-फाइनल
फाइनल में स्टूडेंटृस को अकाउंटेंसी प्रोफेशन से संबंधित विषयों के एडवांस स्टेज की जानकारी दी जाती है। इसमें विद्यार्थियों को फाइनेंशियल रिर्पोटिंग,फाइनेंशियल मैनेजमेंट, एडवांस मैनेजमेंट इन अकाउंटिंग, ऑडिटिंग ऐंड प्रोफेशनल एथिक्स, इंफॉर्मेशन सिस्टम कंट्रोल ऐंड ऑडिट, प्रिंसपल ऑफ ई गवर्नेस, कॉरपोरेट ऐंड एलाइड लॉ, इंटरनेशनल टैक्सेसन ऐंड वैट आदि से संबंधित ज्ञान का परीक्षण किया जाता है। इसमें भी दो ग्रुप होते हैं और आप चाहें, तो दोनों ग्रुप को एक साथ दे सकते हैं। फाइनल एग्जामिनेशन में कैंडिडेट्स को दो ग्रुपों में आठ प्रश्नपत्र पास करने होते हैं। प्रत्येक प्रश्नपत्र सौ अंक का होता है।
 

अपडेटेड कोर्स है सीए
सीए अब किसी कंपनी के व्यवसाय के बडे से बडे ऑपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा है। पहले उसकी भूमिका अकाउंट संभालने तक ही सीमित थी। आज इसके कोर्स को अपडेट करके कम्प्यूटर ट्रेनिंग, कम्युनिकेशन स्किल और पर्सनेलिटी डेवलपमेंट से भी जोड दिया गया है। इंस्टीट्यूट समय और आवश्यकता के अनुरूप कोर्स में समय-समय पर बदलाव करता रहता है, ताकि स्टूडेंट्स नई-नई जानकारी से अपडेट होते रहें। एक कामयाब सीए बनने के लिए पेशे की अच्छी समझ, कमिटमेंट, गंभीरता, ईमानदारी और खुद को अपडेट करते रहना जरूरी है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कानून को भी समझना चाहिए।
अमरजीत चोपडा
प्रेसीडेंट, आईसीएआई, दिल्ली
 

बढ रहा है डुएल डिग्री का महत्व
सीए का प्रोफेशन अपने आप में बेहतर है, लेकिन आजकल हर कंपनियां डुएल डिग्री को वरीयता दे रही है। यही कारण है कि मैंने सीए और एमबीए किया। यदि आपके पास सीए के साथ-साथ मैनेजमेंट या बीकॉम या एमकॉम की डिग्री है, तो आपके लिए बेहतर अवसर हो सकते हैं, क्योंकि इन दिनों कंपनियां ऐसे एम्प्लाई चाहती है, जो हर तरह के काम करने में सक्षम हों। सीए का कोर्स करने के बाद आप किसी भी कंपनी में बतौर फाइनेंस मैनेजर, फाइनेंशियल कंट्रोलर, फाइनेंशियल एडवाइजर या फाइनेंस डायरेक्टर की हैसियत से काम कर सकते हैं। अकाउंटेंसी, ऑडिटिंग, टैक्सेशन, इंवेस्टीगेशन तथा कंसलटेंसी, इंश्योरेंस, आईटी, पब्लिक फाइनेंस और रिस्क ऐंड इंश्योरेंस सर्विस के क्षेत्र में भी अवसरों की भरमार है। आप किसी भी स्ट्रीम से जुडे हुए हों, यदि रुचि और योग्यता है, तो किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल की जा सकती है। वर्तमान में आरबीआई के गवर्नर डी. सुब्बाराव एमटेक हैं और देश की अर्थव्यवस्था निर्धारित कर रहे हैं।
राकेश दत्ता
हेड फाइनेंस, सकाटा इंक्स इंडिया लि.
 

परीक्षा की तैयारी में अनुशासन आवश्यक
सीए परीक्षा की तैयारी के लिए जरूरी है कि आप चार से पांच वर्षो के प्रश्नपत्रों को निर्धारित समय-सीमा के अंदर हल करने की कोशिश करें। बेहतर होगा कि आप घर पर रहकर परीक्षा की तरह प्रश्नों को हल करने का अभ्यास करें। इससे आपका कॉन्फिडेंस बढेगा और समय रहते तैयारी भी बेहतर हो जाएगी। इंस्टीट्यूट द्वारा सजेस्टेड आंसर भी मिलते हैं, आप उसका गहराई से अध्ययन करें। फाइनेंस सर्विस और सिस्टम ऑडिट में सीए प्रोफेशनल की काफी मांग है।
के.के. अवस्थी, सीनियर जीएम-कॉरपॉरेट, जेपीएल
 

सिस्टेमेटिक स्टडी जरूरी
चार्टर्ड अकाउंटेंसी के फाइनल वर्ष की परीक्षा दे रही छात्रा चारु कहती हैं कि सीए इतना टफ नहीं, जितना लोगों में इस कोर्स के प्रति भय व्याप्त रहता है। यदि टाइम मैनेजमेंट का ध्यान रखते हुए सिस्टेमेटिक स्टडी की जाए तो तय समय में यह कोर्स पूरा किया जा सकता है। मैं इंटरमीडिएट के बाद इंरोल्ड हुई और 2006 में सीपीटी में ऑल इंडिया में मेरी 8वीं रैंक आई और 2008 में पीसीसी में मुझे 5वीं रैंक मिली। अब फाइनल की परीक्षा दे रही हूं। मेरी यह सफलता केवल सिस्टेमेटिक स्ट्डी का ही परिणाम है।
चारु अग्रवाल, सीए फाइनल स्टूडेंट्स
 
 ट्रेनिंग में स्टाइपेंड
तीन वर्ष की ट्रेनिंग के दौरान स्टूडेंट्स को स्टाइपेंड दिया जाता है। यह स्टाइपेंड उसी सीए को देना पडता है, जिसके मार्गदर्शन में स्टूडेंट्स प्रैक्टिस करते हैं। इंस्टीट्यूट नॉ‌र्म्स के मुताबिक स्टूडेंट्स को प्रथम वर्ष एक हजार रुपये, दूसरे वर्ष 1250 रुपये एवं तीसरे वर्ष 15 सौ रुपये दिए जाते हैं।
15 दिन का जीएमसीएस कोर्स
स्टूडेंट्स को तीन वर्ष का प्रशिक्षण करने के उपरांत 15 दिनों का जनरल मैनेजमेंट ऐंड कम्युनिकेशन स्किल्स (जीएमसीएस)कोर्स करना पडता है। यह सभी स्टूडेंट्स के लिए अनिवार्य है। इसे इंस्टीट्यूट ही कराता है। इस कोर्स के माध्यम से स्टूडेंट्स को मैनेजमेंट स्किल्स मजबूत करने की कोशिश की जाती है।
 
सीए के लिए योग्यता
चार्टर्ड अकाउंटेंसी कोर्स करने के लिए न्यूनतम योग्यता बारहवीं उत्तीर्ण होना है। यदि आप ने किसी भी स्ट्रीम से 10+2 किया है या फिर परीक्षाफल आने वाला है तो आप सीपीटी यानि कॉमन प्रोफिशिएंसी टेस्ट में बैठने की योग्यता रखते हैं। इसके पहले यह नियम था कि ग्रेजुएशन करने के बाद स्टूडेंट्स को सीपीटी नहीं देना पडता था। अब सीपीटी पास करने के बाद ही आईपीसी में बैठने की अनुमति मिलेगी।
 
एग्जाम का समय
आईसीएआई की स्थापना वर्ष 1949 से लेकर वर्तमान समय तक परीक्षा का आकार एवं नेटवर्क खूब बढा है। 1949 में आयोजित पहले एग्जाम में 450 स्टूडेंट्स शामिल हुए थे, जिनकी संख्या बढकर अब एक लाख से कहीं अधिक हो गई है। देश में सीए एग्जामिनेशन 95 शहरों के 173 केन्द्रों पर साल में दो बार मई व नवम्बर में आयोजित किया जाता है।
 

नियमित पढाई जरूरी
यह मेडिकल और इंजीनियरिंग की तरह ही प्रोफेशनल कोर्स है, इसलिए इसे गंभीरतापूर्वक लेना चाहिए। सीए बनने की चाह रखने वाले को मेहनती और सच्ची लगन वाला होना चाहिए। जो पाठ्यक्रम दिया गया है, उसे पूरी तरह कवर करना चाहिए। संस्थान द्वारा दिए गए स्टडी मैटीरियल का अध्ययन सही तरीके से करना चाहिए। इसमें हर साल बहुत अधिक संख्या में छात्र बैठते हैं, लेकिन बहुत कम स्टूडेंट्स ही सफल हो पाते हैं। इस कारण यह अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की अपेक्षा कहीं कठिन है। इसमें हर दिन कंपनी और टैक्स के नियम बदलते रहते हैं। आपको इन सबकी जानकारी होना बेहद जरूरी है। इस परीक्षा में धैर्य की काफी आवश्यकता होती है, क्योंकि आप चाहकर भी सभी परीक्षा की तैयारी एक साथ नहीं कर सकते हैं। आपको आईपीसी पास करने के बाद तीन वर्ष की ट्रेनिंग के बाद ही फाइनल परीक्षा में बैठने की अनुमति मिलती है। इस कारण इन तीन वर्षो में प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के साथ ही अपनी तैयारी को बेहतर शेप देते रहना चाहिए। कुछ स्टूडेंट्स ट्रेनिंग के दौरान रास्ते से भटक जाते हैं और कुछ पैसे के लालच में पढाई बीच में ही छोड देते हैं या तैयारी के लिए उचित समय नहीं दे पाते हैं। इसकी संख्या इस प्रोफेशन में काफी है। आपके लिए उचित यही होगा कि आप सीए में एडमिशन लेने से पहले ही यह निश्चय कर लें कि फाइनल परीक्षा पास करने के बाद ही नौकरी करूंगा। यदि इस तरह की इच्छाशक्ति के साथ-साथ कठिन मेहनत करने की क्षमता भी आप में है, तो आप इस परीक्षा में अवश्य सफल होंगे।
 

किस तरह के कार्य
कुछ समय पहले वैश्विक स्तर पर अपने बिजनेस को विस्तार देते हुए भारती एयरटेल ने साउथ अफ्रीका में अपना कारोबार स्थापित किया तो उसमें अहम प्लेयर के रूप में एक और शख्स का नाम सामने आया। उन्होंने साउथ अफ्रीका में कंपनी का कारोबार आगे बढाने, इसकी संभावनाओं का आकलन करते हुए इस डील को सफल बनाने में अहम रोल अदा किया। यह शख्स दरअसल पेशे से एक सीए है, लेकिन इस तरह के कारोबार में इनकी भी जरूरत पडी। उनकी तरह देश में कई और सीए भी हैं, जो आज अर्थव्यवस्था को सही दिशा देने में निरंतर सक्रिय हैं। सीए को वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकास का सारथी भी कहा जाने लगा है। एक दशक पहले तक सीए का काम खाली अकाउंटिंग तक ही सीमित था, लेकिन जमाना कुछ ऐसा बदला कि बिजनेस के क्षेत्र में होने वाली हर बडी से बडी और छोटी से छोटी डील में वह अहम प्लेयर बन कर उभर रहा है। देश-दुनिया में आए दिन होने वाले व्यवसाय और निरंतर हो रहे आर्थिक विकास में वित्तीय एप्लिकेशन को संभालने और उससे जुडी आवश्यक जानकारी रखने का काम सीए करने लगा है। वह फाइनेंशियल इंफॉर्मेशन, जिसमें बैलेंस शीट भी शामिल है, को सर्टिफाई करता है। अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने, इससे जुडे सिस्टम का ऑडिट और उसे सर्टिफाई करने का काम उसी के जिम्मे होता है। इसके आधार पर ही कोई कंपनी या सरकारी निकाय अपने आगे के भविष्य के बारे में कोई निर्णय लेती है। अकाउंट और फाइनेंस से हट कर देश में प्रचलित विभिन्न तरह के करों के भुगतान के हिसाब-किताब भी कहीं न कहीं सीए ही देखता है। देश में जन-कल्याण से जुडी कई योजनाएं लाई जा रही हैं, मसलन नरेगा की ही बात करें तो यह हर एक पंचायत से लेकर जिला और राज्य स्तर तक फैला है। इसमें आए दिन अनियमितता की शिकायतें आती रहती हैं। इन सबसे बचने और इस योजना की सफलता का आकलन करने के लिए ऑडिट कराने का भी प्रावधान रखा गया है। ऑडिट करने के लिए यहां भी सीए की जरूरत पडती है।
 

अवसर ही अवसर
वर्ष 2008 के बाद से भारत में चार्टर्ड एकाउंटेंट की मांग बहुत तेजी से बढ रही है। विकसित होती अर्थव्यवस्था में इस पाठ्यक्त्रम की काफी आवश्यकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि आज भारत में किसी भी अन्य प्रोफेशनलों की अपेक्षा सीए की मांग अधिक है। वित्त और लेखा आउटसोर्सिंग की भी यदि बात की जाए तो केपीओ और बीपीओ के बढते बजार में भी चार्टर्ड अकाउंटेंट का अपना अलग ही महत्व है। एक अनुमान के मुताबिक, फिलहाल भारत में प्रतिवर्ष 9000 से 10,000 छात्र सीए की परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं, जबकि भारत में सीए की मांग इससे कई गुना अधिक है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निजी कंपनियां, बैंक और सरकारी निकाय, सभी को आज सीए की जरूरत पडती है। इसके अलावा पब्लिक अकाउंटिंग के प्रैक्टिशनर के रूप में सीए काम कर सकता है, पार्टनर या स्टाफ मेंबर के रूप में कोई फर्म ज्वॉइन कर सकता है। आयकर, सेवाकर और अप्रत्यक्ष करों की प्रैक्टिस के लिए इनकी जरूरत पडती है।
जेआरसी टीम ( दैनिक जागरण )











Friday, December 10, 2010

  जानदार लोगों का शानदार करियर

 


जानदार लोगों का शानदार करियर
















आजकल युवाओं के पास विकल्पों की कमी नहीं है। वे चाहें तो योग्यता के अनुसार विभिन्न प्रकार के कोर्स कर सकते हैं। यदि आपकी इच्छा कुछ अलग तरह का कोर्स करने की है, जिसमें बेहतर सैलरी के साथ रोमांच भी हो, तो ओशनोग्राफी का विकल्प बेहतर है। इन दिनों इससे संबंधित प्रोफेशनल की काफी मांग है।
 

कोर्स
इसमें यूजी एवं पीजी किया जा सकता है। समुद्र विज्ञान की विभिन्न शाखाओं का विषय के रूप में चयन करके पोस्ट ग्रेजुएशन भी कर सकते हैं। अधिकतर संस्थानों में प्रवेश के लिए अच्छे अंक होना आवश्यक है।
 

शैक्षिक योग्यता
यह फील्ड साइंस के उन स्टूडेंट्स के लिए है जिनकी गणित में अच्छी पकड है। इस फील्ड में 12वीं के बाद भी प्रवेश किया जा सकता है। गोवा यूनिवर्सिटी से समुद्र विज्ञान में बीएससी कर सकते हैं। ओशनोग्राफी में पीजी कोर्स वही कर सकता है जो इसी विषय में स्नातक की योग्यता रखता है।
 

व्यक्तिगत गुण
इस सेक्टर से जुडे लोगों का अधिकतर समय प्रयोगशालाओं और समुद्र के बीच ही बीतता है। वे हर समय समुद्र की गहराइयों में कुछ नया खोजने में लगे रहते हैं। इस कार्य को वही कर सकता है, जो शारीरिक एवं मानसिक रूप से मजबूत होने के साथ-साथ समुद्री जल एवं हवाओं से होने वाली परेशानियों का सामना करने में भी सक्षम हो।
 

क्या है काम
इसके विशेषज्ञ समुद्र के बहाव की दिशा और दशा, उसके फिजिकल और केमिकल रिएक्शंस, जलवायु परिवर्तन और उसके समुद्री जीवों पर पडने वाले प्रभाव आदि की जानकारी एकत्र करते हैं। इसकी कई फील्ड हैं, जिनमें विशेषज्ञता हासिल की जा सकती है। जैसे- मैरीन बायोलॉजी, जियोलॉजिकल ओशनोग्राफी, फिजिकल ओशनोग्राफी आदि।
 

क्या है ओशनोग्राफी
ओशनोग्राफी के अंतर्गत समुद्र, समुद्र तटीय क्षेत्रों, नदी मुख, तटीय जल, समुद्री जीवों, समुद्री धाराओं और तरंगों आदि का अध्ययन किया जाता है। इस फील्ड में बायोलॉजी, फिजिक्स, केमिस्ट्री, मेटियोरोलॉजी, जियोलॉजी आदि विज्ञान की कई शाखाओं का उपयोग होता है। यह एक विस्तृत विषय है और इसमें भूगर्भ विज्ञान और मौसम विज्ञान की आवश्यक चीजों के बारे में भी स्टूडेंट को जानकारी दी जाती है। समुद्री विज्ञान की फील्ड में करियर बनाने की चाह रखने वाले इसकी उप शाखाओं समुद्री जीव विज्ञान, भूगर्भ समुद्र विज्ञान, रासायनिक समुद्र विज्ञान आदि में भी भविष्य संवार सकते हैं।
 

चुनौतियों से बढते अवसर
ग्लोबल वार्मिग आज बडी चुनौती के रूप में सामने है। बढते तापमान के कारण हिमग्लेशियरों का पिघलना शुरू हो चुका है और समुद्र के जलस्तर में वृद्घि दिखाई देने लगी है। इस विभीषिका के चलते कुछ छोटे द्वीपों का तो अस्तित्व ही खत्म हो गया है। इस विकराल चुनौती का सामना करने के लिए विश्वस्तर पर शोध किए जा रहे हैं। इस काम के लिए बडी संख्या में समुद्र विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के विशेषज्ञों की आवश्यकता है। इस विषय के अच्छे जानकारों के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर के शोध संस्थानों के साथ काम करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं। विशेषज्ञों के अनुसार ग्लोबल वार्मिग का संकट दिन प्रतिदिन विकराल होता जा रहा है, ऐसे में आने वाले सालों में भी इस फील्ड के योग्य लोगों के पास बेहतरीन अवसरों की कोई कमी नहीं रहेगी।
 
केमिकल ओशनोग्राफी : इसमें समुद्री जल के संयोजन और उसकी क्वालिटी का आकलन किया जाता है। समुद्र की तलहटी में होने वाले केमिकल रिएक्शन पर नजर रखने के साथ-साथ उस टेक्नोलॉजी की भी खोज की जाती है जिनसे महत्वपूर्ण नई जानकारियां हासिल हो सकती हैं।
 
जियोलॉजिकल ओशनोग्राफी : जियोलॉजिकल ओशनोग्राफर्स का काम समुद्री जल की ऊपरी तह की वास्तविक स्थिति का अध्ययन करना और समुद्र की तलहटी में पाए जाने वाले खनिज पदार्थो के बारे में पता लगाना होता है। ये लोग समुद्र के अंदर की चट्टानों के आकार-प्रकार और उनकी उम्र आदि के बारे में भी जानकारियां हासिल करते हैं।
 
फिजिकल ओशनोग्राफी : यह इस विज्ञान की बहुत महत्वपूर्ण शाखा है। इसमें समुद्र के तापमान, लहरों की गति और चाल, वायु का उस पर पडने वाला असर, ज्वार-भाटा और घनत्व आदि के बारे में अध्ययन किया जाता है। विकासशील देशों में इन प्रोफेशनल्स की विशेष मांग है।
 
मैरीन बायोलॉजी : मैरीन बायोलॉजिस्ट समुद्री जीवजंतुओं की स्थिति, मानव के लिए उनकी उपयोगिता, जीवजंतुओं की शारीरिक संरचना आदि के बारे में जानकारियां हासिल करते हैं। इन दिनों समुद्र में तेल और गैस के नए भंडारों को खोजने के लिए भी मैरीन बायोलॉजिस्ट की सहायता ली जा रही है। अपने देश में इन दिनों इस प्रोफेशन के लोगों की जबरदस्त मांग है।
 

रोजगार के अवसर
ओशनोग्राफी से संबंधित विभिन्न कोर्सो को करने के बाद अच्छा रोजगार मिलना लगभग तय हो जाता है। आप इसका प्रशिक्षण लेकर वैज्ञानिक, इंजीनियर या तकनीशियन के रूप में इस क्षेत्र से संबंधित निजी एवं सार्वजनिक कंपनियों में काम कर सकते हैं। इसका प्रशिक्षण पाने के बाद अधिकतर लोग जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, डिपार्टमेंट ऑफ ओशनोग्राफी, ऑयल इंडिया आदि में नौकरी करते हैं।
 

वेतन
यह फील्ड वेतन के मामले में भी बहुत अच्छी है। अगर अच्छी कंपनियों से करियर की शुरुआत होती है तो सैलरी 15 हजार रुपये प्रतिमाह से अधिक ही होती है, जो कुछ समय के बाद ही इससे कहीं अधिक हो जाती है। इस फील्ड में शोधकार्य के लिए चुने गए लोगों को बहुत अधिक आकर्षक वेतन और सुविधाएं कंपनियां देती हैं।
 

प्रमुख संस्थान
यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास
गोवा यूनिवर्सिटी, गोवा
उत्कल विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर
अन्नामलाई विश्वविद्यालय
मंगलौर विश्वविद्यालय, कर्नाटक
बरहामपुर यूनिवर्सिटी, उडीसा
( दैनिक जागरण )




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                 सुनहरा करियर बेहतर सैलरी

 

 

 


सुनहरा करियर बेहतर सैलरी पेट्रोलियम की खपत और उपयोगिता से शायद ही कोई अनभिज्ञ हो। पेट्रोलियम क्षेत्र में नित नई-नई खोजें हो रही हैं और वैकल्पिक ईधन की तलाश में कई नए प्रयोग भी किए जा रहे हैं। अनवरत खोज का ही नतीजा है कि पहले लोग पेट्रोल, केरोसिन, एलपीजी और डीजल को ही जानते थे, लेकिन अब इस कडी में सीएनजी भी शामिल हो गई है। यही कारण है कि इस फील्ड में ट्रेंड प्रोफेशनल्स की काफी आवश्यकता महसूस की जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, आज अगर यूथ इससे संबंधित कोर्स कर लेते हैं, तो उनके सामने नौकरी की समस्या नहीं रहेगी।
 

कोर्स और योग्यता
इस क्षेत्र में सुनहरा भविष्य बनाना चाहते हैं तो आपके सामने कई तरह के कोर्स मौजूद हैं। आप चाहें तो रिजरवायर, रिफाइनरी और ऑयल ऐंड गैस में बीई और बीटेक कर सकते हैं। बीटेक के बाद संबंधित क्षेत्रों में एमटेक भी किया जा सकता है। इसके अलावा एमटेक डुअल डिग्री करने का भी विकल्प खुला है, जो पांच साल की डिग्री है और इसमें 10+2 पास आउट छात्रों को दाखिला मिल जाता है। देश के प्रमुख संस्थानों द्वारा प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है, जिसमें उत्तीर्ण होने वालों को ही प्रवेश दिया जाता है। इसके साथ ही कुछ चुनिंदा संस्थान एमएससी कोर्स भी संचालित कर रहे हैं। आप चाहें तो ऑयल ऐंड गैस मैनेजमेंट से एमबीए भी कर सकते हैं। बीटेक और बीई में बारहवीं पास छात्र दाखिला ले सकते हैं।
 

बेसिक साइंस की समझ जरूरी
इस फील्ड में अपना भविष्य तलाश रहे युवाओं के लिए इसके कामकाज का तरीका समझना अधिक जरूरी होता है। इनका काम जमीन के अंदर तेल की खोज और खुदाई, नमूनों की जांच, क्रूड ऑयल को अलग-अलग करना, प्रोसेसिंग और प्रोडक्शन करना होता है। ये फील्ड मेकेनिकल माइनिंग और केमिकल इंजीनियरिंग का मिला-जुला रूप है। इसलिए बेसिक साइंस फिजिक्स, जियोलॉजी और केमिस्ट्री के छात्र इस फील्ड को करियर के रूप में अपना सकते हैं।
 

पद और कार्य
यह फील्ड कई शाखाओं में विभाजित है। स्टूडेंट्स अपनी रुचि और योग्यता के अनुरूप जिस भी शाखा को अपनाना चाहें, अपना सकते हैं। इसके प्रमुख क्षेत्र और पद निम्न हैं:
 
प्रोडक्शन इंजीनियर : प्रोडक्शन इंजीनियर तेल के कुंओं की खुदाई होने के बाद अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए ईधन को सतह तक लाने के बेहतर तरीके इजाद करने का काम करते हैं। अगर चाहें तो आप इस पद पर काम कर सकते हैं।
 
ऑयल वेल-लॉग एनालिस्ट : तेल के कुओं की खुदाई के दौरान कई मापों का ध्यान रखना, ऑयल फील्ड के नमूने लेना तथा नमूनों की जांच करना होता है।
 
ऑयल ड्रिलिंग इंजीनियर : इस क्षेत्र के जानकार तेल के नए कुंओं की खुदाई की योजना बनाने के साथ-साथ इस बात की भी स्ट्रेटजी बनाते हैं कि लागत कम से कम आए।
 
ऑयल फै सिलिटी इंजीनियर : जब ईधन सतह पर आ जाता है तो ऑयल फै सिलिटी इंजीनियर उसे अलग करके, उसकी प्रोसेसिंग तथा अन्य स्थानों पर पहुंचाने का काम करते हैं।
 

मांग की अपेक्षा उत्पादन कम
पेट्रोलियम के प्रोडक्शन में भारत काफी पीछे है, लेकिन पेट्रोलियम की खपत के मामले में ये विकसित देशों से टक्कर ले रहा है। देश में मुंबई हाई, कृष्णा-गोदावरी बेसिन और असम के कुछ हिस्सों से पर्याप्त मात्रा में तेल प्राप्त होता है। तेल की खपत की बात की जाए तो भारत विश्व के शीर्ष दस मुल्कों में शामिल है। एक अनुमान के अनुसार भारत में ये तकरीबन 2 मिलियन प्रति बैरल रोजाना के आसपास है। घरेलू मांग की पूर्ति के लिए भारत दुनिया के विभिन्न देशों से लगभग 60 फीसदी तेल का आयात करता है।
 

क्या पढना होगा
मुख्य रूप से अपस्ट्रीम एवं डाउन स्ट्रीम सेक्टर, पेट्रोलियम इंडस्ट्री की शाखाएं हैं। अपस्ट्रीम में ऑयल एवं प्राकृतिक गैस का दोहन किस तरह किया जाए, इसकी जानकारी स्टूडेंट्स को दी जाती है। जबकि डाउन स्ट्रीम सेक्टर में रिफाइनिंग, मार्केटिंग एवं वितरण क्षेत्र में कैंडिडेट्स को प्रशिक्षित किया जाता है। पेट्रोलियम इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स क ो भौतिकी ऐंड इंजीनियरिंग एवं जियोलॉजी के सिद्घांतों के माध्यम से डेवलपमेंट तथा प्रोसेसिंग और पेट्रोलियम रिकवरी के बारे में बताया जाता है। इसके साथ ही मैकेनिक्स, ड्रिलिंग, पर्यावरण संरक्षण जैसे सब्जेक्ट भी पढाए जाते हैं।
 

संभावनाएं
एक बेहतरीन पेट्रो एक्सपर्ट के लिए केवल इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट ही विकल्प नहीं हैं, वह माइंस की खुदाई और उसमें से खनिज और ईधन की खोज का काम भी किया जा सकता है। चाहें एग्रीकल्चर हो, परफ्यूम इंडस्ट्री हो या फिर पेंट्स इंडस्ट्री इस तरह के सभी उद्योग-धंधे पेट्रोलियम पर ही निर्भर करते हैं। लुब्रीकेंट्स, पेस्टीसाइड्स, कीटनाशक, केरोसिन, वैक्स और दूसरी तमाम तरह की चीजें किसी न किसी तरह पेट्रोलियम से ही बनी हैं। मार्केटिंग में भी इसकी संभावनाएं बेहद अधिक हैं। जब यहां पेट्रो प्रोडक्ट का इस्तेमाल ज्यादा है, तो इसका भविष्य भी उज्ज्वल है। यही कारण है कि भारत को आज रिफाइनिंग हब कहा जाने लगा है। इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम, ओएनजीसी, रिलायंस, अदानी एस्सार और केयर्स एनर्जी जैसी कई बडी कंपनियां पेट्रो प्रोफेशनल्स को शानदार सैलरी पैकेज पर नौकरियों के ऑफर दे रही हैं। इस समय तकरीबन भारत में 15 लाख से ज्यादा लोग किसी ने किसी तरह इस फील्ड से जुडे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, केवल भारत में ही हर साल तकरीबन आठ लाख प्रोफेशनल्स की मांग है। विकल्प के रूप में आपके लिए यूरोप के साथ ही खाडी देशों के भी दरवाजे खुले हैं। अब तक इस फील्ड में सिर्फ जियोलॉजिस्ट और केमिकल इंजीनियरों का ही दबदबा था, लेकिन बढती मांग और फील्ड के विस्तार के साथ विभिन्न क्षेत्रों में इससे संबंधित एक्सपर्ट तैयार हो रहे हैं। कहने का आशय यह है कि पेट्रोलियम इंडस्ट्री अब काफी बडा रूप ले चुकी है। यह एक पेट्रोल पंप से रिफाइनरी डिपो और मल्टीनेशनल कंपनियों तक फैल चुका है। आजकल पेट्रोल पंप मॉल्स की शक्लो-सूरत ले चुके हैं, जहां आपको सुपरवाइजर से लेकर मैनेजर तक की जॉब्स मिल सकती हैं।
 

सैलरी
इस तरह के प्रोफेशनल की मांग देश ही नहीं, विदेशों में भी काफी है। यदि आपके पास पेट्रोलियम सेक्टर से संबंधित डिग्री या डिप्लोमा है और आप अनुभवी हैं तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर पैकेज पर हाथों-हाथ नियुक्ति पत्र मिल सकता है। फेशर्स की सैलरी कंपनी और उसकी योग्यता पर निर्भर करती है। वैसे ट्रेंड एवं फेशर्स भी तीन लाख से लेकर पांच लाख रुपये तक सलाना पैकेज आसानी से हासिल कर लेते हैं। सरकारी एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों में भी आकर्षक सैलरी उपलब्ध है। इस फील्ड के ट्रेंडों का पैकेज विदेशों में कई गुना हो जाता है। यदि विदेश की तरफ रुख करना चाहते हैं, तो अंग्रेजी का बेहतर ज्ञान जरूरी है।
 

कहां से करें कोर्स
आईआईटी, चेन्नई।
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम टेक्नोलॉजी, रायबरेली।
यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम ऐंड एनर्जी स्टडीज, देहरादून।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी।
इंडियन स्कूल ऑफ माइंस, धनबाद।
पुणे विश्वविद्यालय, पुणे।
महाराष्ट्र इंडस्ट्री ऑफ टेक्नोलॉजी, पुणे।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी, गांधी नगर।
अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय अलीगढ, उत्तर प्रदेश।
( दैनिक जागरण )





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Wednesday, November 24, 2010



ब्रेड के गुलाब जामुन

ब्रेड के गुलाब जामुन
 

विधि :
पिसी हुई मिश्री में खोया, चिरौंजी और पिसी इलायची मिला दें। ब्रेड को एक प्लेट में फैलाकर दूध में भिगो दें। पांच मिनट बाद ब्रेड को निचोड़ दें ताकि दूध निकल जाएं। इसमें मैदा व सूजी मिलाएं। मिश्रण ज्यादा सख्त नही होना चाहिए।
मिश्रण की छोटी-छोटी गोलियां बनाएं। प्रत्येक गोली में बीच में मिश्री वाला मसाला भर कर बंद कर दें। चीनी और पानी की एक तार की चाशनी बनाकर अलग रख लें।
अब गर्म तेल में मध्यम आंच पर सुनहरे भूरे होने तक गोलियां तले और इन्हें गर्म चाशनी में डाल दें। 2-3 घंटे चाशनी में गोलियां भीगने दें। तैयार हैं गुलाब जामुन। इन पर पिस्ते की कतरन छिड़क कर सर्व करें।
 
सामग्री :
6 ब्रेड स्लाइस, 1 टी स्पून मैदा, 1 टी स्पून बारीक सूजी, 3 टे.स्पून दूध, 1/2 टी स्पून इलायची पाउडर, 1 टे.स्पून, पिसी मिश्री,1 टे.स्पून हल्का भुना हुआ खोया, 1 टी स्पून चिरौंजी, 1 टी स्पून बारीक कटा पिस्ता, तलने के लिए रिफाइंड ऑयल।
कितने लोगों के लिए : 3





गाजर का हलवा




गाजर का हलवा
 

विधि :
गाजर को छीलकर धो लें और कद्दूकस करके दूध के साथ कड़ाही में डालकर लगातार चलाते हुए सारा पानी सुखा लें। जब गाजर का सारा पानी सूख जाये तो उसमें चीनी और घी डालकर अच्छी तरह मिला लें।
खोये को हाथ से मसलकर हलवे में डाल दें। सूखी मेवा और इलायची डालकर कुछ देर लगातार चलाते हुए पकाये। गर्मागर्म सर्व करें।
 
सामग्री :
6 गाजर, 1 कप दूध, 1/2 कप चीनी, 1/2 कप खोया, 1 टे.स्पून बादाम (बारीेक कटा), 5 इलायची, 2-3 पिस्ते, 1/4 कप घी, 1 टी स्पून किशमिश।
कितने लोगों के लिए : 2




मैंगो सोरबे



मैंगो सोरबे
 
विधि :
मैंगो जूस, नींबू का रस और एसेंस एक साथ मिलाकर ठंडा करें। एक कंटेनर में घोल डालें और ढक्कन लगाकर फ्रिजर में तब तक रखें जब तक जम न जाए। फ्रिज से निकालें और ब्लेंडर में डालकर ब्लेंड करें। इसे फिर कंटेनर में डालकर ढक्कन लगाकर फ्रिजर में दोबारा रखें। एक बार और यही क्रिया दोहरा कर फ्रिजर में रखें। अंगूर और पुदीने के पत्ते से सजाकर सोरबे के स्कूप्स आइस्क्रीम ग्लास में निकालकर सर्व करें।
 
सामग्री :
4 कप मैंगो जूस, 2 टी स्पून नींबू का रस,1 टी.स्पून बादाम का एसेंस।
सजावट के लिए:
काले अंगूर या चेरी और पुदीने के पत्ते।
कितने लोगों के लिए : 6




मिस्सी पूड़ी



मिस्सी पूड़ी
 

विधि :
एक परात में आटा और बेसन छान लें अब इसमें सभी मसाले और बारीक कटी प्याज, हरी मिर्च और हरा धनिया डाल दें।
मोयन डालकर अच्छी तरह मिला लें, गरम पानी से गूंध लें आटा रोटी के आटे से थोड़ा सख्त गूंधे जैसे पूड़ी के लिए गूंधते हैं। गीले कपड़े से ढक कर आधे घंटे के लिए रख दें।
आधे घंटे बाद हाथ से लोइयां बना कर, चकले पर बेल कर गरम तेल या घी में तल लें।
गरमागरम मिस्सी पूड़ी अचार, चटनी या सब्जी के साथ सर्व करें।
 
सामग्री :
300 ग्राम गेंहू का आटा, 150 ग्राम बेसन, 1/4 टी स्पून अजवायन, 1 चुटकी हींग, 1/4 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर, 1 टी स्पून सूखा धनिया, 1/4 टी स्पून हल्दी, 2 हरी मिर्च, 1 प्याज बारीक कटी हुई, 1/2 कप हरा धनिया, 1 टे.स्पून तेल मोयन के लिए, तलने के लिए तेल आवश्यकतानुसार, नमक स्वादानुसार।
कितने लोगों के लिए : 5




केसरी पनीर



केसरी पनीर
 
विधि :
केसर को एक चम्मच पानी में भिगो दें। अब एक पैन में घी गरम कर उसमें टॉमेटो प्यूरी, लाल मिर्च पाउडर, चीनी और नमक डाल दें। एक मिनट तक चलाकर दही भी डाल दें। 5 मिनट तक लगातार चलाते हुए भून लें अब इसमें पनीर भी डाल दें।
2 मिनट तक पकने दें। अब हरी इलायची पाउडर, भीगी हुई केसर और बादाम के टुकड़ों से सजाकर सर्व करें।
 
सामग्री :
250 ग्राम पनीर, 1/4 टी स्पून केसर, 2 टे.स्पून देसी घी, 1/2 कप टॉमेटो प्यूरी, 1 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर, 1 टे.स्पून चीनी, नमक स्वादानुसार, 1 कप दही, 1/4 टी स्पून हरी इलायची पाउडर, 5-6 भुने हुए बादाम (बारीक कटे हुए)।
कितने लोगों के लिए : 3


 

 

 

फ्रूट सलाद



फ्रूट सलाद
 
विधि :
बर्फ चूर-चूर कर लीजिए, संतरा छीलिए और गूदा निकालिए, अनन्नास के गोल स्लाइस काटिए, खरबूजे की छोटी-छोटी फांके कीजिए।
अब एक बड़ी प्लेट में अनन्नास के टुकड़े बिछाकर रखिए। इनके ऊपर बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े रखिए। फिर संतरे के गूदे को बर्फ के टुकड़ों पर फैला दीजिए।
दही-चीनी भलीभांति फेंट लीजिए। इसको संतरों के ऊपर और चारों ओर फैलाइए। दही मलाईदार और मीठा हो, फिर केले और खरबूजे के पतले कतलों को प्लेट के चारों और रखिए। इन सबके ऊपर अनार के दाने और चीकू सजाकर रखिए। ठंडा कर सर्व करें।
 
सामग्री :
1 अनन्नास, 1 लाल दानेदार अनार, 1 रसीला संतरा, 2 केले, 4 चीकू, 5-6 खरबूजे की फांकें, 250 ग्राम दही, इच्छानुसार चीनी और बर्फ।
कितने लोगों के लिए : 5

( दैनिक जागरण )

Monday, November 22, 2010

  तनाव को करेगा दूर ये मंत्र..





 
 


 
 ऊं को निराकार ब्रम्ह का स्वरूप माना गया है।ऊं की ध्वनि एक ऐसी ध्वनि है जिसकी गुंज को बहुत प्रभावशाली माना गया है। ऊं के उच्चारण के कई सारे फायदे हैं। ऊं की ध्वनि मानव शरीर के लिये प्रतिकुल डेसीबल की सभी ध्वनियों को वातावरण से निष्प्रभावी बना देती है।


- विभिन्न ग्रहों से आने वाली अत्यंत घातक अल्ट्रावायलेट किरणों का प्रभाव ओम की ध्वनि की गुंज से समाप्त हो जाता है। मतलब बिना किसी विशेष उपाय के भी सिर्फ ओम् के जप से भी अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम किया जा सकता है।- ऊँ का उच्चारण करने वाले के शरीर का विद्युत प्रवाह आदर्श स्तर पर पहुंच जाता है।


- इसके उच्चारण से इंसान को वाक्सिद्धि प्राप्त होती है।


- नींद गहरी आने लगती है। साथ ही अनिद्रा की बीमारी से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।


-मन शांत होने के साथ ही दिमाग तनाव मुक्त हो जाता है।






वो मंत्र जो आपकी जिंदगी बदल सकता है


 
जो मन के तंत्र पर अधिकार रखता है, वही मंत्र है। मन का तंत्र यानि कि मन का सिस्टम। मंत्र एक एसा रिमोट कंट्रोल है जो मन और उसकी अप्रत्याशित शक्तियों को नियंत्रित ही नहीं बल्कि अपनी सुविधानुसार संचालित भी कर सकता है। ध्वनि विज्ञान ही मंत्र का आधार है। ध्वनि की अद्भुत शक्ति के साथ, साधक का मनोबल और एकाग्रता की शक्ति मिलकर एक ऐसी अजेय शक्ति बन जाती है, जिसके लिये कुछ भी असंभव नहीं रहता। इस अजेय शक्ति को साधक जब किसी निर्धारित लक्ष्य पर प्रेषित करता है तो विधि का गुप्त विधान इसके अनुकूल हो जाता है।

एक नई दुनियां- मंत्र विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया भर में आज तक जितने भी मंत्र खोजे या बनाए गए हैं, उनमें गायत्री मंत्र को सर्वोच्च शक्तिशाली व सर्व समर्थ मंत्र होने का दर्जा प्राप्त है। ब्रह्मऋषि विश्वामित्र ने एक सवर्था नवीन सृष्टि रचने का जो अभिनव चमत्कार किया था, वह इस गायत्री मंत्र से प्राप्त शक्ति के आधार पर ही किया था। यह तो एक उदाहरण मात्र है, ऐसे अनेकानेक चमत्कार गायत्री मंत्र के बल पर हो चुके हैं। वेद, उपनिषद्, पुराण आदि तमाम ग्रंथ गायत्री मंत्र के अद्भुत व आश्चर्यजनक चमत्कारों से भरे पड़े हैं। आज भी यदि कोई पूरे विधि-विधान से गायत्री मंत्र की साधना करे, तो भौतिक या आध्यात्मिक लक्ष्य कोई भी हो हर हाल में उसे प्राप्त किया जा सकता है।
 
 
 
 
 

ऐसे पाएं आत्मविश्वास से भरा व्यक्तित्व

 
 





आज इस भागदौड़ से भरे जीवन में कॉम्पीटिशन बहुत बढ़ गया है। हर कोई दूसरे को पीछे धकेलकर खुद आगे बढऩा और उन्नति के शिखर पहुंचना चाहता है।अक्सर मदद ना मिलने के कारण हम पीछे रह जाते हैं। दूसरों से मदद पाने के लिए और उन्हें अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ये जरूरी है कि आपका व्यक्तित्व आकर्षक हो।


व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने में रंग-रूप का कोई महत्व नहीं होता। दरअसल किसी व्यक्ति का आत्मविश्वास कितना है? यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि किसी व्यक्ति का अपने आप पर विश्वास और कुछ कर गुजरने की चाहत ही उसे आकर्षक बनाती है। अब सवाल ये उठता है कि आत्मविश्वास लाएं कैसे? आत्मविश्वास के लिए सकारात्मक सोच होना बहुत जरूरी होती है। जो सकारात्मक सोचता है वही आत्मविश्वास से भरपूर दिखाई पड़ता है।


यदि आप भी आत्मविश्वास चाहते हैं तो इसके लिए ध्यान सबसे आसान तरीका है। इसलिए हर रोज अपने लिए कुछ समय निकालकर ध्यान जरूर करें। ध्यान एक ऐसा माध्यम है जो पूरे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। धीरे-धीरे ध्यान का समय बढ़ाते जाएं क्योंकि जितना अधिक समय ध्यान करते हैं उसका चेहरा उतना ही कांतिमय हो जाता है। साथ ही व्यक्तित्व का आकर्षण बढ़ता ही चला जाता है।      ( दैनिक भास्कर )





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Saturday, November 20, 2010

हौंसलों की ऊंची उड़ान

      
हौंसलों की ऊंची उड़ान कहते हैं जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है। बडी उपलब्धियां वही हासिल करता है जो निरंतर संघर्ष के लिए तैयार होता है। प्रतिभा तो हर शख्स में होती है, लेकिन सभी बडी उपलब्धियां हासिल नहीं कर पाते। इन्हें हासिल वही करते हैं जो विपरीत स्थितियों से घबराए बगैर यह ठान लेते हैं कि उन्हें यह काम करना ही है और इसमें पूरी तरह सफल होना है। हालांकि इसके पहले यह तय कर लेना जरूरी होता है कि आपको करना क्या है? किस दिशा में जाना है? फिर उस मंजिल तक पहुंचने में चाहे कितनी भी अडचनें और परेशानियां क्यों न आएं, उन्हें हंसते-हंसते झेलने के लिए तैयार रहें। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि किसी भी क्षेत्र में किसी व्यक्ति की सफलता अकेले उसके ही प्रयासों का परिणाम नहीं होता। हर सफल व्यक्ति के पीछे कई लोग होते हैं। वे माता-पिता हो सकते हैं, भाई-बहन हो सकते हैं, पति या पत्नी, बच्चे, मित्र और यहां तक कि अपरिचित लोग भी हो सकते हैं। कभी यह सहयोग आर्थिक होता है, तो कभी भावनात्मक और कभी बौद्धिक भी। विपरीत परिस्थितियों में आप सिर्फ किसी का हौसला बनाए रखें तो यह भी कोई मामूली सहयोग नहीं होगा।
संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपनी विफलता से हार मान कर ठहर जाते हैं। वे मान लेते हैं कि शायद यही उनकी नियति है। इसके विपरीत कुछ लोग बार-बार विफल होकर भी अपने प्रयास निरंतर जारी रखते हैं। वहीं कुछ लोग यह मानकर कि अब हमारी इस दिशा में संघर्ष की उम्र नहीं रही, अपनी महत्वाकांक्षाएं अपने बच्चों पर थोपते हैं। जबकि कुछ लोग धारा के साथ बहने में यकीन करते हैं और ऐसे ही बडी उपलब्धियां हासिल करते हैं। वे अपने परिवार के छोटे सदस्यों को उसी दिशा में आगे बढने देते हैं, जो वे स्वयं अपने लिए चुनते हैं। वे इसमें ही उन्हें सहयोग करते हैं। जिन्हें यह सहयोग मिलता है, उनके लिए रास्ता थोडा आसान हो जाता है। कुछ और हो न हो, कम से कम इतना तो होता ही है कि उनका हौसला बना रहता है और संघर्षो के दौर में हौसले का बने रहना मामूली बात नहीं है।
विपरीत परिस्थितियों के बावजूद
वैसे ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जिन्होंने हर तरह से विपरीत परिस्थितयों के बावजूद वह सब हासिल किया, जो चाहा। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम इसके जीवंत उदाहरण हैं। बचपन में उन्होंने बहुत कठिनाइयों और आर्थिक संकटों के बावजूद पढाई जारी रखी। तब शायद कोई नहीं जानता रहा होगा कि यह मेधावी छात्र एक दिन राष्ट्र का नेतृत्व करेगा और नया इतिहास रचेगा। तमाम कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने अपनी जगह बनाई।
आज संसार में सबसे अमीर आदमी के रूप में प्रतिष्ठित बिल गेट्स का बचपन आर्थिक तो नहीं, पर भावनात्मक रूप से संघर्षपूर्ण रहा है। ये अलग बात है कि अपनी धुन के पक्के बिल गेट्स ने कभी इन बातों की परवाह नहीं की। बिल गेट्स बचपन में निहायत जिद्दी रहे हैं। वह अपनी बहनों के साथ घुलमिल भी नहीं पाते थे। बेहद इंट्रोवर्ट  थे। मां के दिए किसी भी काम को वह पूरा नहीं करते, क्योंकि उनकी अलग दुनिया थी जिसमें वह खोए रहते। काम पूरा न होने पर मां खीझती। एक दिन इंटरकॉम  पर मां ने पूछा किबिल तुम क्या कर रहे हो तो बिल ने चिल्ला कर जवाब दिया कि सोच रहा हूं। मां इस जवाब पर हैरान रह गई। चिंतित मां बिल को मनोवैज्ञानिक के पास ले गई। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि यह बच्चा कुछ अलग है। उन्होंने बिल को सही दिशा और पूरी रचनात्मकता देने की कोशिश की। उन्हें ढेर सारी किताबें पढने को दीं। बिल की मां से कहा कि इस बच्चे को अपनी राह पर चलने दें। सिएटल के सबसे महंगे स्कूल लेकसाइड में उनका एडमिशन करवाया गया। यहां आकर उनकी दोस्ती कंप्यूटर से हुई। जो उनका भविष्य बना। यहां केवल 13  साल की उम्र में उन्होंने प्रोग्रामिंग और सॉफ्टवेयर डेवलप  करनी शुरू कर दी। कंप्यूटर के बादशाह बन गए।
हर बच्चा है विशेष
याद रखें कि हर बच्चा अपने-आपमें विशेष है। केवल अपने माता-पिता के लिए ही नहीं, बल्कि समाज और देश के लिए भी। हर बच्चे के भीतर कोई न कोई खास प्रतिभा और योग्यता जरूर होती है। सवाल उसे प्रोत्साहन देकर बाहर निकालने का है। वैसे तो बच्चे को यह वरदान कुदरत से ही मिला है कि वह हर पल खुश रहे, ऊर्जावान रहे और निरंतर आगे बढने की कोशिश करे। यह भी महत्वपूर्ण है कि इस सबके लिए उसे पारिवारिक माहौल, भरपूर स्नेह और सही समझ की जरूरत होती होती है। उसे चाहिए ऐसा सुरक्षा चक्र जो न केवल उसे आश्वस्त रखे, बल्कि भावनात्मक और व्यावसायिक मामलों में भी उसका बडा संबल बने। जो पेरेंट्स अपने बच्चों को यह माहौल दे पाते हैं उनके बच्चे आगे निकल आते हैं। वहीं जिन्हें यह माहौल नहीं मिल पाता है वे पीछे छूट जाते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह किसी की सफलता में कई लोगों का हाथ होता है, वैसे अपनी विफलता के लिए भी कोई व्यक्ति अकेले जिम्मेदार नहीं होता है।
पहचानें क्षमताओं को
डॉ. जयंती  दत्ता का मानना है, हर बच्चे के भीतर विकास की जबरदस्त  क्षमता होती है। हम ही उसे बचपना कहकर टाल देते हैं। जरूरत उसकी क्षमताओं को पहचान कर, उसे समझने और विकसित करने की है। यह काम यदि अपने से संभव न हो तो किसी प्रोफेशनल की मदद भी ली जा सकती है। इसके लिए बेहतर होगा कि सबसे पहले अपने बच्चे से अच्छे रिश्ते बनाएं। उसे समझने की कोशिश करें। कई बार नन्हे दिमाग में भी बडे काम की बात छिपी होती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि किसी भी व्यक्ति की सफलता की नींव भावनात्मक लगाव पर ही टिकी होती है। इसे मजबूत ब नाएं। परवरिश अनूठी चीज है जो बच्चों की प्रतिभा  को तराशने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पेरेंट्स की यह कोशिश होनी चाहिए कि इसमें कहीं कोई कमी न रह जाए। साथ ही उसकी पढाई भी बाधित न हो यह भी ध्यान रखें।
हर माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वे बच्चों को आगे बढने में मदद करें। लेकिन इस क्रम में मूल्यों से वे टूटने न पाएं, इस बात का भी खयाल रखें। क्योंकि आपसे उनके जुडाव की स्थिति भी पूरी तरह बच्चों को आपके दिए संस्कारों पर ही निर्भर है। हमारे समाज में ऐसे पेरेंट्स की कमी नहीं है, जिन्होंने कई स्तरों पर संघर्ष कर अपने बच्चों को उसी दिशा में आगे बढाने की हर संभव कोशिश की, जिधर उन्होंने जाना चाहा। इस बार मिलते हैं कुछ ऐसे ही पेरेंट्स से, जिनके बच्चों ने उनके सहयोग से समाज में अपनी खास पहचान बनाई।
मेहनत के साथ किस्मत भी चाहिए
पिता, देवाशीष  मुखर्जी
मुंबई आने से पहले मैं दिल्ली में एक मल्टीनेशनल  कंपनी में विजुअल मैनेजर था। 2003  में मैं परिवार समेत मुंबई आ गया। शुरू से ही मेरी दिलचस्पी नाटकों, टीवी धारावाहिकों तथा फिल्मों में अभिनय करने की थी। मैं एफ.टी.आई. में दाखिला लेना चाहता था, मगर ग्रेजुएशन के बाद ही दाखिला मिल सकता था। 1992  में आशा चंद्रा इंस्टीट्यूट से अभिनय में डिप्लोमा किया। काम करते हुए भी मेरे अंदर का कलाकार कई बार मेरे सामने आकर खडा हो जाता। मेरी कशमकश को मेरी पत्नी समझती थी। उसने मुझे अभिनय में ही करियर बनाने की सलाह दी। वह स्वयं रेयान इंटरनेशनल स्कूल में वाइस प्रिंसिपल है। मुंबई आने के बाद मेरी दोस्ती कुछ डिस्ट्रीब्यूटर्स से हो गई थी, जो बहुत काम आई। उनकी मदद से मुझे छोटा-मोटा काम मिलता रहा। मगर अविनाश ने वह कर दिखाया जो मैं नहीं कर सका। सच है कि टेलीविजन की दुनिया में नाम कमाने वाले अविनाश ने मेरे सपनों को सच किया है। टेलीविजन में काम करने का फैसला अविनाश का अपना फैसला है और ये फैसला उसने केवल 9  वर्ष की उम्र में लिया था। उसका पहला सीरियल था मन में है विश्वास जिसमें उसने फरहान के बचपन का किरदार निभाया था। इस सीरियल की विशेषता थी सौ पेज की स्क्रिप्ट और उर्दू भाषा। पहले मुझे लगा ये नहीं कर पाएगा, मगर इसके आत्मविश्वास ने उसे भी संभव बना दिया। मन में है विश्वास के बाद अविनाश राजकुमार आर्यन में नजर आया, मगर उसकी असली पहचान बालिका वधू के जगदीश  से बनी। पहले उसकी पहचान मुझसे थी, मगर आज मेरी पहचान उससे है। यह इंडस्ट्री महज एक इत्तफाक है। यहां कब, कौन, कहां पहुंच जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। जिस दिन अविनाश को न्यू टैलेंट अवॉर्ड से नवाजा गया वह मेरी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण दिन था। जब अविनाश आठ साल का था तब नोएडा में एक डांस कॉम्पीटिशन  में भाग लेना चाहता था। मगर मैंने इंकार कर दिया, क्योंकि उसे नाचना नहीं आता था। मेरे लाख मना करने के बावजूद उसने उसमें भाग लिया और प्रथम आया। मुझे उसके आत्मविश्वास और हौसले का लोहा मानना ही पडा। जैसा कि मैं आपसे पहले ही कह चुका हूं कि हमें आर्थिक रूप से कभी कोई परेशानी नहीं रही है। मगर अविनाश का यह मानना है कि हमें आम लोगों की तरह व्यवहार करना चाहिए और भूख लगने पर बडा पाव खाना चाहिए, क्योंकि यही संघर्ष की पहचान है। वैसे भी स्वभाव से वह मिलनसार और दूसरों को सम्मान देने वाला लडका है। भविष्य में हमारी इच्छा उसे सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनाने की है। यह उसका सपना है।
मैंने हमेशा संतुलन बनाए रखा
मां, शिल्पा खारा
स्वीनी की सफलता के पीछे हमसे अधिक स्वीनी की अपनी मेहनत है। स्वीनी  ने साढे तीन साल की उम्र में अपना पहला कमर्शियल  एड अजंता टूथब्रश का किया था। उसके बाद उसने दूरदर्शन पर एक शो किया। उस समय स्वीनी  बहुत छोटी थी। मैं हमेशा उसके साथ रहती थी। उसकी सबसे बडी खासियत यह थी कि उसे कैमरे या स्टेज का डर  बिलकुल नहीं था। यही वजह है कि स्कूल के अधिक से अधिक कार्यक्रमों में वही नजर आती थी। स्वीनी  की प्रतिभा से प्रभावित होकर मैंने उसका पोर्टफोलियो बनवाया। स्वीनी के फोटोग्राफ्स  कई प्रोडक्शन हाउसेज को भेजीं। इत्तफाक से कुछ ही महीनों में हमें सकारात्मक जवाब आने लगे। जहां कहीं ऑडिशन  होता मैं स्वीनी  को ले जाती। मुझे खुशी है, एक मां होने के नाते मैंने जो अपार क्षमताएं स्वीनी  में देखीं, उनको लोगों ने भी सराहा। 2005  में जब उसे अमिताभ जी के साथ फिल्म चीनी कम मिली वो लम्हा  मेरे लिए सबसे यादगार था। उस फिल्म में बच्चन जी के सामने काम करना स्वीनी  के लिए कितना चुनौतीपूर्ण था, मैं नहीं जानती। मेरे लिए यह बहुत बडी बात थी। इसके लिए मैं बच्चन जी को धन्यवाद दूंगी, जिन्होंने स्वीनी  से दोस्ती करके उसे फिल्म में एकदम सहज कर दिया। वैसे इसके लिए एक हफ्ते की वर्कशॉप  भी काम आई जो निर्देशक ने करवाई थी।
स्वीनी  अब तक 75  कमर्शियल  और 13  फिल्में कर चुकी है। सभी बडे ब्रैंड तथा सेलिब्रिटीज केसाथ काम कर चुकी है। मगर आज भी वह लम्हा मेरे दिल की अनंत गहराइयों में बसा हुआ है, जब वह पहली बार टेलीविजन पर नजर आई थी। स्वीनी  ने यूं तो सबसे पहले अजंता  टूथब्रश  का विज्ञापन किया था, मगर वह विज्ञापन तब तक टेलीविजन पर नहीं आया था। उससे पहले उसका दूरदर्शन पर पहला कार्यक्रम आया, जो घुंघरूओं पर आधारित था। जिस दिन रात को साढे आठ बजे उसका एपिसोड  दिखाया जाने वाला था, हमारे घर में त्योहार जैसा माहौल था। उसे कभी ऐसा नहीं लगा कि उस पर काम और पढाई का काफी दबाव है। उसने दोनों चीजों को बेहद समझदारी और खूबसूरती से हैंडल किया। फिलहाल मैं उसे कोई भी फिल्म या कोई प्रोजेक्ट हाथ में लेने नहीं दे रही। मुझे लगता है कि अभी स्वीनी  के लिए पढाई बहुत जरूरी है। उसे अपना पूरा ध्यान पढाई पर ही देना चाहिए।
स्वीनी की सफलता के पीछे हमसे अधिक स्वीनी  की अपनी मेहनत है। स्वीनी  ने साढे तीन साल की उम्र में अपना पहला कमर्शियल  एड अजंता टूथब्रश का किया था। उसके बाद उसने दूरदर्शन पर एक शो किया। उस समय स्वीनी  बहुत छोटी थी। मैं हमेशा उसके साथ रहती थी। उसकी सबसे बडी खासियत यह थी कि उसे कैमरे या स्टेज का डर  बिलकुल नहीं था। यही वजह है कि स्कूल के अधिक से अधिक कार्यक्रमों में वही नजर आती थी। स्वीनी की प्रतिभा से प्रभावित होकर मैंने उसका पोर्टफोलियो बनवाया। स्वीनी के फोटोग्राफ्स  कई प्रोडक्शन हाउसेज को भेजीं। इत्तफाक से कुछ ही महीनों में हमें सकारात्मक जवाब आने लगे। जहां कहीं ऑडिशन  होता मैं स्वीनी को ले जाती। मुझे खुशी है, एक मां होने के नाते मैंने जो अपार क्षमताएं स्वीनी  में देखीं, उनको लोगों ने भी सराहा। 2005  में जब उसे अमिताभ जी के साथ फिल्म चीनी कम मिली वो लम्हा मेरे लिए सबसे यादगार था। उस फिल्म में बच्चन जी के सामने काम करना स्वीनी  के लिए कितना चुनौतीपूर्ण था, मैं नहीं जानती। मेरे लिए यह बहुत बडी बात थी। इसके लिए मैं बच्चन जी को धन्यवाद दूंगी, जिन्होंने स्वीनी  से दोस्ती करके उसे फिल्म में एकदम सहज कर दिया। वैसे इसके लिए एक हफ्ते की वर्कशॉप  भी काम आई जो निर्देशक ने करवाई थी।
स्वीनी  अब तक 75  कमर्शियल  और 13  फिल्में कर चुकी है। सभी बडे ब्रैंड तथा सेलिब्रिटीज के साथ काम कर चुकी है। मगर आज भी वह लम्हा मेरे दिल की अनंत गहराइयों में बसा हुआ है, जब वह पहली बार टेलीविजन पर नजर आई थी। स्वीनी  ने यूं तो सबसे पहले अजंता  टूथब्रश  का विज्ञापन किया था, मगर वह विज्ञापन तब तक टेलीविजन पर नहीं आया था। उससे पहले उसका दूरदर्शन पर पहला कार्यक्रम आया, जो घुंघरूओं पर आधारित था। जिस दिन रात को साढे आठ बजे उसका एपिसोड  दिखाया जाने वाला था, हमारे घर में त्योहार जैसा माहौल था। उसे कभी ऐसा नहीं लगा कि उस पर काम और पढाई का काफी दबाव है। उसने दोनों चीजों को बेहद समझदारी और खूबसूरती से हैंडल किया। फिलहाल मैं उसे कोई भी फिल्म या कोई प्रोजेक्ट हाथ में लेने नहीं दे रही। मुझे लगता है कि अभी स्वीनी के लिए पढाई बहुत जरूरी है। उसे अपना पूरा ध्यान पढाई पर ही देना चाहिए।

मेरे सपने आकाश ने पूरे किए
मां, ज्योति नायर
मुझे अभिनय से लगाव था, लेकिन उस दौर में न तो बच्चों के लिए टैलेंट कॉन्टेस्ट थे, न रिअलिटी शोज  थे। मेरी बडी बेटी आकांक्षा होनहार है, पर उसे एक्टिंग में दिलचस्पी नहीं थी। जबकि आकाश को शुरू से अभिनय व भिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों में दिलचस्पी रही है। मुझे लगा था कि जिन कलाओं में मेरा रूझान था, उन्हें करने का मौका मुझे नहीं मिला। यदि आकाश में हुनर  है तो वह क्यों न उन्हें पूरा करे? मुझे नहीं पता था कि गलाकाट प्रतियोगिता  के युग में आकाश को कैसे मौका मिलेगा? हमारा कोई जानकार नहीं था, हमने जस्ट  डायल सर्विस  के जरिये मौके तलाशने की कोशिश की। निर्माता शिवेंद्र सिंह डुंगरपूर को आकाश में अपार संभावनाएं नजर आई। आकाश ने उनके लिए ब्रिटैनिया बिस्किट्स का एड किया। उस वक्त आकाश केवल छ: साल का था। आकाश के पिताजी बिल्डर  हैं, उन्हें समय कम मिलता है। मैंने ही किसी तरह तालमेल बैठाया। आकाश ने 75  विज्ञापन फिल्मों में काम किया। उसे कई ब्रैंडस  के लिए पहचाना जाने लगा। आगे चलकर उसे भाभी धारावाहिक में काम मिला। हां, मैंने आकाश की मानसिकता ऐसी बनाई कि वह सकारात्मक ढंग से असफलता को भी स्वीकार करे। शूटिंग के दौरान मिलने वाला खाना ठीक नहीं होता। लिहाजा उसका खाना-पानी, ब्रेकफस्ट, स्नैक्स साथ लेकर जाती हूं। वह पांच-छ: साल की उम्र से काम कर रहा है, लेकिन उसने अपनी पढाई पर असर कभी पडने नहीं दिया। उसे अपनी प्राथमिकताएं  समझ आने लगी हैं। हाल ही में महत्वाकांक्षी  धारावाहिक में आकाश ने बाल गणेश का किरदार निभाया। ऑडिशन की सारी परीक्षाओ ं से गुजर कर आकाश उत्तीर्ण हुआ। आगे भी कम मुश्किलें नहीं थीं, उसे गणेश के किरदार के लिए कई-कई घंटे सूंड  लगाकर रहना पडा। इस बीच वह कुछ खा-पी नहीं सकता था। उम्र कम होने के कारण तरस भी आता, सारी परेशानियों को आकाश ने हंसते हुए सहन किया। अब तक की उसकी जो भी उपलब्धियां  हैं, उसमें हम पेरेंट्स के अलावा उसकी बहन आकांक्षा और सारे टीचर्स का भी योगदान है। उन सभी के सहयोग के बिना आकाश की यह सफलता असंभव थी।
मुझे उस पर  पूरा विश्वास है
पिता, मिथिलेश कुमार शर्मा
तेजस्वी मात्र नौ महीने का था जब बिहार के आरा जिले के गांव जगदीशपुर में पोलियो का गलत इंजेक्शन लगाने से उसका पैर खराब  हो गया। एक अपाहिज की जिंदगी जीना किसी कष्टदायक चुनौती से कम नहीं था। किसी तरह कक्षा तीन तक उसने वहां पढाई की और सन 2000 में हम दिल्ली आ गए। यहां उसने के.जी. से पढाई आरंभ की। जिससे कि वह इंग्लिश माध्यम में पढ सके। वह बच्चों को खेलते-कूदते देखता तो सोचता काश वह भी इन बच्चों जैसा बन पाता। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उसे दिखाया। उसका ऑपरेशन हुआ। पहले दो महीने प्लास्टर चढा, फिर बैसाखी दी गई। इसके बाद कैलिपर  की सहायता से वह चलने लगा। मैंने उसका आत्मविश्वास हमेशा बनाए रखा। मैं खुद  बहुत अच्छा योगा जानता हूं। इसलिए मैंने उसे बचपन से सिखाना शुरू कर दिया था। नब्बे प्रतिशत अंक लाने और योग्यता परीक्षा पास करने पर भी उसे प्रवेश दिलाने के लिए मुझे अतिरिक्त प्रयास करने पडे। इतनी फीस देना भी मेरे बस से बाहर था। एक दिन उसके दोस्त ने उसे बताया कियोग की स्टेट लेवल पर प्रतियोगिता होने जा रही है, तुम उसमें भाग लो। उसकी योग टीचर वंदना मैडम ने कुछ आसन और क्रियाएं पूछीं। तेजू ने सभी का जवाब मुस्तैदी से दिया। इस प्रकार उसने वाराणसी जाकर उस प्रतियोगिता में भाग लिया और स्वर्ण पदक जीता। उसने जूडो-कराटे सीखना शुरू किया। इंटरनेशनल मैथमैटिक्स ओलंपियाड में उसने स्वर्ण पदक हासिल किया। सरप्राइज  हिंदी परीक्षा में वह हाईस्कूल प्रतियोगिता में प्रथम आया। अंग्रेजी सुधारने के लिए इंग्लिश स्पीकिंग  कोर्स किया। यहां डिबेट प्रतियोगिता में स्टार परफॉर्मर  का अवॉर्ड जीता। पढने के अलावा उसे भजन लिखने का भी शौक है। वह कलेक्टर बनना चाहता है।
मेधावी है वह
मां, सीमा भटनागर
मुझे जन्म से ही आंखों की तकलीफ थी। ऑब्टिकल न‌र्व्स  कमजोर हो जाने पर इन न‌र्व्स पर लाइट पडने से ही विजन क्लीयर  होता है। कमजोर होने पर ही देखने में परेशानी आती है। एक दृष्टिहीन की परेशानी क्या होती है, यह मैं अच्छी तरह जानती थी। शादी के बाद मैं बच्चे को जन्म देने में इसीलिए डर रही थी, लेकिन बेटी सामान्य पैदा हुई। फिर बेटा अविचल हुआ। लगा सब कुछ ठीक-ठाक है। लेकिन अपने भीतर के संदेह को दूर करने के लिए मैं इसे इंदौर में डॉ. हार्डिया  के पास ले गई। उस समय यह तीन महीने का था। गई मैं अपने लिए थी। उन्होंने चेक करते ही बता दिया कि इसे भी कॉर्निया की परेशानी है। वह दिन मैं अपने जीवन में कभी भूल नहीं पाऊंगी। इतना गहरा आघात लगा कि पूरी रात मैं रोती रही और जी भर कर भगवान को कोसती रही। डॉक्टर ने कहा कि आपका ऑप्रेशन  देर से नौ साल की उम्र में हुआ था। आप इसका ऑपरेशन अभी करा लेंगी तो फायदा होगा। अपने इलाज के पैसों से मैंने उसका ऑपरेशन करा लिया। जितनी सावधानियां बरतने को कहा गया सब बरतीं। पूरी सेवा की। लगा कि शायद रास्ते आसान हो गए। लेकिन इसकी आंख में एक सफेद स्पॉट था। हम डॉक्टर के पास ले जाते वे कहते कि झिल्ली सी आ जाती है। तकनीकी जानकारी हमें थी नहीं। अलीगढ ले गए, वहां डॉक्टर ने देखकर बता दिया कि ग्लूकोमा हो गया है। उन्होंने कहा कि कॉर्निया ट्रांसप्लांट  होगा, लेकिन सफलता की संभावना आधी-आधी है। आंख ठीक भी हो सकती है और जा भी सकती है। लगा कि कहीं जो रोशनी है उससे भी वंचित न हो जाना पडे। इसलिए वापस आ गए। हमने इसे ब्लाइंड स्कूल में डाल दिया। मैं जानती थी कि छोटा होने के कारण इसे बहुत परेशानियां आएंगी। अकेला और लाचार बच्चा इसे हैंडल नहीं कर सकता था। वह बीमार रहने लगा। मैं उसे वापस ले आई। इसे नेशनल ब्लाइंड एसोसिएशन में भर्ती कराया। सेंटर फॉर साइट में दिखाया तो उन्होंने बताया कि ग्लूकोमा  मेच्योर  हो गया है। यहां ऑपरेशन  कराया 2007  में। काफी ठीक नजर आने लगा। लेकिन यह खुशी  ज्यादा  दिन नहीं रही। बॉडी  ने कॉर्निया  रिजेक्ट कर दिया। जहां से शुरू किया था वहीं वापस खडे थे। फिर उसे दिल्ली के आर.के.पुरम स्थित डी.पी.एस. में एडमिशन कराया। मुझे लगता है कि विशेष बच्चों को सामान्य धारा के बच्चों के साथ पढाने के बहुत फायदे हैं। वे दुनिया से अलग-थलग नहीं रहते। इसकी सबसे बडी खासियत  यह है कि इसका दिमाग तेज है। तेजी से चीजों को ग्रहण करता है। अपने स्कूल की अनेक सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लेता है। अखिल भारतीय भाषण प्रतियोगिता में अविचल को दिल्ली में पहला और राष्ट्रीय स्तर पर दूसरा पुरस्कार मिला। इसमें उसे लैपटॉप, ट्रॉफी तथा सर्टिफिकेट मिला। संगीत में उसकी रुचि है। बांसुरी बजाना उसे पसंद है। अकेले आने-जाने की असुविधा के कारण उसे सीखने में परेशानी आती है। मैं चाहती हूं कि वह स्वावलंबी बने। वह राजनेता बनना चाहता है। जिंदगी की सच्चाइयों से अभी परिचित नहीं है।
हमारे हाथ में कुछ नहीं
पिता, ब्रजमोहन
मेरे दो बेटे हैं। बेहद साधारण परिवार है हमारा। जब रितेश  एक साल का हुआ तब हमें पता चला कि इसे ठीक से सुनाई नहीं देता। आर्थिक अभावों के कारण हम इसका इलाज ठीक से नहीं करा सकते थे। सुन न पाने के कारण यह बोलने में असमर्थ था। अस्पतालों के चक्कर भी लगाए, लेकिन बहुत फायदा नहीं मिला। सेाचा कि गूंगों-बहरों के स्कूल में डालूं। लेकर गया लेकिन साइन लैंग्वेज  सिखाने वालों का कहना था कि यह उस श्रेणी में नहीं आता। इसे उसकी जरूरत नहीं है। सामान्य धारा वाले कहते कि यह मेन स्ट्रीम में नहीं चल पाएगा। समझ में नहीं आ रहा था कि कहां जाएं, क्या करें? एच.सी.आर.ए. (हैंडीकैप्ड चिल्ड्रन रिहैबिलिटेशन एसोसिएशन) का पता मिला। वहां ले गए। डॉक्टर  ने कान में हियरिंग  एड लगाने की सलाह दी। वास्तव में स्पीच थेरेपी उसके लिए जरूरी थी। उसी से कुछ सुधार की उम्मीद थी। लेकिन महंगी होने के कारण हमारे बस से बाहर थी। अब यही संस्था हमारे बच्चे की परवरिश में मदद करती है। इसी के कारण वह विशेष बच्चों के ओलंपिक में भाग ले पाया। गोल्ड मेडल जीतने की खुशी जितनी उसे है, उतनी ही हमें भी है। शायद वह कहीं और पैदा हुआ होता तो अपनी योग्यता का सही इस्तेमाल कर पाता। संस्था के हर कार्यक्रम व गतिविधियों में वह हिस्सा लेता है। बच्चे उसका मजाक बनाते, पर हम समझाते हैं। बडा भाई नौवीं क्लास में है। वह पूरे तौर पर सामान्य है। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह सक्षम बन सके और तमाम कठिनाइयों के बाद भी अपनी खुद की जगह बना सके। मेरे बस में जो कुछ भी संभव है वह मैं जरूर करूंगा। आगे उसका भाग्य है।
उसकी कामयाबी पर यकीन था
मां, आरती श्रीकांत मायदेव
जब वह पांच साल की थी। उसकी बहन मनाली एक्टिंग कर रही थी। तभी एक दिन मैंने देखा कि नन्हीं शेफाली  भी उसकी नकल कर रही थी। पहले तो हम परेशान हुए। हमने उसे समझाने की बहुत कोशिश की कि बेटा पहले पढाई को अहमियत दो, इसके लिए अभी समय नहीं है। लेकिन उसने दृढता से कहा कि मैं सब कर लूंगी, मां आप चिंता न करें। उसका दृढ निश्चय देखकर हमें उसका साथ देना पडा। मैं उसके आत्मविश्वास को देखकर दंग रह गई। पहले तो यही डर था कि हम लोग मराठी हैं। हिंदी अच्छी नहीं आती, लेकिन अब तो उसने बिहारी भाषा को अपना लिया है। मैं भी मां हूं, इसलिए मुझे तो मदद करनी ही थी। मैं नौकरी करती थी। सबसे पहले इस शो के लिए ऑडिशन  दिलवाने के लिए गए। जब लगा कि सलेक्शन  हो गया है और उसे तब मेरी जरूरत थी। एक तो वह छोटी थी दूसरे नासमझ भी। उसे दुनियादारी  की समझ ही कितनी थी। इसलिए मैंने नौकरी छोड दी। उसे समय पर सब काम कराना होता है और पढाना भी होता है। इसके लिए कई समझौते किए, लेकिन वे ऐसे समझौते हैं, जिससे मेरी और मेरे बच्चे की भलाई होनी है और वे मामूली हैं जैसे कई बार खाना नहीं बनाया। वक्त पर पहुंचना है उसके लिए भी कम कठिनाइयां नहीं झेलीं। सबसे पहले तो मराठी होने के कारण हिंदी बोलने की समस्या थी। फिर यह धारावाहिक तो बिहारी पृष्ठभूमि का होने के कारण भोजपुरी बोली से सराबोर था। लेकिन किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं आई। सब सहज ढंग से चलता रहा। पहली शुरुआत चार साल की उम्र में हुई जब इसे मराठी सीरियल में काम करने को मिला था। उसके बाद मराठी फिल्म मिली। उसके बाद हिंदी धारावाहिक अगले जनम.. में काम मिला। जब बच्चे को सफलता मिलती है, तो हर मां को खुशी होती है। मुझे भी हुई।
पूरा जीवन एक प्रतियोगिता है
मां, सायरा  मुसानी
शायद आपको जान कर आश्चर्य होगा कि यह बहुत छोटी उम्र से ही कुछ अलग दिखने लगी थी। जब यह केवल दो साल की थी तभी मुझे इसके शौक और काबिलियत का अंदाजा हो गया था। वह बहुत छोटी उम्र से ही सबका ध्यान अपनी ओर खींचती। मां होने के नाते जो कुछ भी कर सकती थी मैंने किया। लेकिन इतना जरूर कहूंगी कि मैंने कुछ खास  नहीं किया। वह जिस स्वभाव की थी उसके लिए यह करना जरूरी भी था। केवल इतना जरूर किया कि इसे ऑडिशन  केलिए लेकर मुंबई आए। यूं हम मूल रूप से गुजरात के निवासी हैं। बाकी काम अपने आप होता चला गया समझौते हर व्यक्ति को अपने तरीके से करने ही पडते हैं। किसी की भी जिंदगी आसान नहीं। अफसा में खूबी  है सबका मन जीत लेने की। इसमें उसे क्षण भर भी नहीं लगता। सबको अपना बना लेती है।
जीवन है ही एक प्रतियोगिता। इसलिए इसमें परेशानियां तो आएंगी ही। समझौते भी अपने-अपने तरीकों से करने ही पडते हैं। छोटी है उसका पूरा ध्यान रखना पडता है। हर समय उसके लिए मार्गदर्शक बनकर खडे रहना पडता है। काम के साथ-साथ उसकी पढाई का भी ध्यान रखना पडता है। वह जितनी छोटी है उसे अकेला एक क्षण के लिए भी नहीं छोडा जा सकता। यदि हमें कामयाबी चाहिए तो निरंतर आगे बढते रहना होगा। हार के डर से रुक नहीं जाना। मेरा खुद  भी इस बात पर पूरा यकीन है। इसका यह पहला धारावाहिक है। इसी में व्यस्त है। काफी शोहरत भी मिल रही है। आगे क्या कैसे चलेगा अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता।


ऐसे बनें विकास में सहयोगी :

1.  बच्चे के सबसे करीब आप ही हैं इस निकटता का लाभ उठाएं।
2.  बच्चा यह चाहता है कि बडे उस पर भरोसा करें और उसकी सहायता भी करें।
3 . यह समझने की कोशिश भी करें कि बच्चा जो व्यवहार कर रहा है उसके पीछे क्या भावना काम कर रही है।
4 . ऐसी योजना बनाएं जिससे आप बच्चे से दो कदम आगे रहें।
5 . बजाय इसके कि आप गुस्सा हों या नाराजगी दिखाएं, खुश  रहें और बच्चे के साथ संतुलित व्यवहार रखें।
6 . बच्चे के लक्ष्य के प्रति लापरवाही या उदासीन रवैया न रखें, बल्कि उसे गंभीरता से लें।
7 . बच्चे की कमजोरियों को धैर्य से नियंत्रित करें और उसे सही राह पर ले जाने में मदद करें।
8 . अपने पर पूरा नियंत्रण रखते हुए सहनशीलता के साथ योजना बनाकर काम करें।
9 . मुश्किलों से घबराएं नहीं।
10 . आने वाले अच्छे कल के साथ उसके अनदेखे पहलुओं को भी नजरअंदाज न करें।


(साक्षात्कार दिल्ली से प्रीति, रतन और मुंबई से पूजा सामंत व रजनी गुप्ता)
( दैनिक जागरण ) 
प्रीति सेठ












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Tuesday, November 16, 2010




        ऐसा होता है साफ दिल का इंसान






आम जीवन में धार्मिक या आध्यात्मिक होने का मतलब धार्मिक उपदेश देते किसी खास इंसान से होता है। जबकि साधारण जिंदगी से अलग होकर जब कोई व्यक्ति अध्यात्म की ओर बढ़ता है, तब उसे किसी ऊपरी दिखावे या बनावटी बातों की जरूरत नहीं होती। क्योंकि अध्यात्म का संबंध आत्मा से होता है। इसलिए वह भलाई, भद्रता और विनम्रता के रुप में बाहर दिखाई देता है। यहां जानते हैं उन लक्षणों को, जो अध्यात्म की ओर बढ़ते हुए व्यक्तित्व की पहचान होते हैं। जिसे सही मायनों में उदारता और आम भाषा में साफ दिल का इंसान भी कहा जाता है -


- वह इतना सरल, सहज और निस्वार्थ हो जाता है कि वह अधिकारों के स्थान पर सिर्फ कर्तव्यों को याद रखता है।
 

- वह किसी भी तरह की हानि या नुकसान होने पर भी आवेश, बदले की भावना से दूर होता है और उल्टे ऐसी हालात में स्नेह और माफी को महत्व देता है।
 
- वह दूसरों की गलतियां देखने, बुराई या ओछे विचारों से दूर रहता है और केवल गुणों और अच्छाईयों को ढूंढता और अपनाने की कोशिश करता है।
 
- ऐसा व्यक्ति बहुत ही धैर्य और संयम रखने वाला होता है। जिसके कारण वह बुरी लतों और गलत कामों से स्वयं को भटकाता नहीं है।
 
- दु:ख हो या सुख उसका व्यवहार और विचार संतुलित होते हैं। वह विपरीत हालात में घबराता नहीं है और नहीं सुख में अति उत्साहित होता है।
 
- कर्तव्यों की ही सोच होने से वह हर तरह की इच्छाओं यानि वासना पर काबू कर लेता है। इससे वह अपनी मानसिक शक्तियों का उपयोग भजन, संगीत, रचनात्मक कामों जैसे चित्रकारी, लेखन, साहित्य के पठन-पाठन में लगाता है।
 
- वह निर्भय होता है। वह मानसिक रुप से इतना जुझारू होता है कि इच्छाशक्ति से अपने लक्ष्य को पा लेता है।

अगर आपकी या किसी नजदीकी व्यक्ति की जिंदगी में कुछ ऐसे ही बदलाव नजर आ रहे है तो समझे ऐसे कदम वास्तविक सुख और शांति की ओर बढ़ रहे हैं।  ( दैनिक भास्कर )








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रात में टेंशन फ्री होकर करें पढ़ाई




सुबह महत्वपूर्ण परीक्षा है और पढ़ने के लिए सिर्फ आज की रात ही बाकी है। या सुबह तक कोई प्रोजेक्ट पूरा करना है और समय भागता जा रहा है। कारण कोई भी हो टेंशन के मारे रात भर नींद नहीं आती। रात तो खराब होती ही है अगला दिन भी खराब होता है। यहां कुछ टिप्स हैं, जिन पर अमल करेंगे तो तनाव की बजाय काम होगा।  काम करते रहें: अपना काम करते रहें। काम बंद कर सोचते रहेंगे तो समय तो बरबाद होगा ही तनाव भी हावी हो जाएगा। ऐसी योजना बनाएं कि हर घंटे 50 मिनिट काम करें और 10 मिनिट आराम। इससे थकान नहीं होगी।

कैफीन से बचें:


संभव हो तो कैफीन से बचें। इसकी बजाय दो ग्लास ठंडा पानी हर 30 मिनिट में पीते रहें। ठंडक से आप जागते भी रहेंगे और बार-बार आपको टॉयलेट जाना पड़ेगा। इससे नींद लग जाने से भी बचे रहेंगे।

खिड़की खुली रखें:


काम करते समय कमरे की खिड़की खुली रखें। ठंडी हवा नींद नहीं आने देगी। यदि आपको लगता है कि तरीका सफल हो रहा है तो ठंडे पानी से मुंह धो लें।

मोबाइल-टीवी बंद रखें:


काम पूरा करना है तो मोबाइल, इंटरनेट, टीवी आदि सब बंद करके रखें। कुछ और पढ़ना, लिखना या ड्राइंग करने की न सोचें। इससे आपका ध्यान भंग नहीं होगा।

बिस्तर पर न बैठें:

बिस्तर, सोफे या जमीन पर बैठकर काम न करें। आप ठंडी व सख्त कुर्सी-टेबल पर बैठकर काम करें। इसके अलावा कहीं और बैठकर काम करेंगे तो आपका मन सोने के लिए ललचाएगा। यदि संभव हो तो अपने बेडरूम से दूर रहकर काम करें।

अलार्म लगाकर झपकी लें:

यदि आपको थोड़ी झपकी लेनी है तो अलार्म लगाकर सिर्फ 20 मिनिट के लिए सोएं। अलार्म बजते ही तुरंत उठ जाएं। 5-10 मिनिट और सो लें, जैसा विचार मन में न लाएं। सोने से पहले लाइट जलाकर रखें, क्योंकि अंधेरे में उठने का मन नहीं होगा।
    ( दैनिक  भास्कर )

  


बैंकों में बूम     बैंकों में बूम     बैंकों में बूम

 

बैंकों में बूम इन दिनों भारतीेय  बैंकिंग सेक्टर में नौकरियां ही नौकरियां हैं। देश के सबसे बडे बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने वर्ष 2010  में 27  हजार कर्मियों की भर्ती करने की योजना बनाई है, जिसके तहत उसने हाल ही में 4,500  प्रोबेशनरी ऑफिसर (पीओ) के लिए आवेदन आमंत्रित किया है। खास बात यह है कि एसबीआई ने पिछले ही साल 25 हजार लोगों को नौकरी दी थी। इसके अलावा कुछ माह पूर्व ही एसबीआई एसोसिएट्स बैंकों में पीओ के लगभग 1700  पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे। इतना ही नहीं, सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य बैंकों ने भी नौकरियों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। एसबीआई लाइफ की भी इस वर्ष 13,000  एजेंट और 200 सेल्स मैनेजरों की भर्ती करने की योजना है। देश की प्रमुख सार्वजनिक बैंकों के अलावा निजी क्षेत्र के बैंक भी भविष्य में नियुक्तियां कर सकते हैं।
बोलते आंकडे
हाल ही में आई मैकिंजी की इंडिया बैंकिंग 2010  रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2001  से भारतीय बैंकिंग सेक्टर 51 प्रतिशत संयोजित वार्षिक दर आगे बढ रहा है, जबकि मार्के ट इंडेक्स 27  प्रतिशत की औसत दर से विकास कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार कुल जीडीपी  में बैंकिंग सेक्टर की हिस्सेदारी 7.7  प्रतिशत से अधिक की होगी और बाजार पूंजीकरण लगभग 7,500  अरब रुपये का हो जाएगा। बैंकिंग सेक्टर के ग्रोथ को देखते हुए माना जा रहा है कि आने वाले समय में 15  लाख लोगों को नौकरी मिल सकती है। पिछले ही साल देश में सरकारी बैंकों में 50,000  से अधिक लोगों को नौकरी मिली है, जिसमें एसबीआई में 11,000  क्लर्को की भर्ती भी शामिल है।
पसंदीदा करियर
सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में बैंकिंग हमेशा से ही युवाओं का पसंदीदा क्षेत्र रहा है। जब कम पदों के लिए परीक्षाएं आयोजित होती थीं, तब भी युवाओं में इसका खासा क्रेज था। वर्तमान समय में तो बैंकिंग सेक्टर में पदों की संख्या के लिहाज से काफी ज्यादा है। बैंकिंग सेक्टर में कई पदों के लिए भर्तियां होती हैं, जिनमें से प्रोबेशनरी  ऑफिसर, स्पेशलिस्ट ऑफिसर्स  एवं क्लर्क के पद प्रमुख हैं। अभ्यर्थी पीओ में भर्ती के बाद शुरू में प्रशिक्षु अधिकारी के रूप में कार्य करता है, लेकिन कुछ ही समय में वह शाखा प्रबंधक बन सकता है। आगे चलकर जनरल मैनेजर, एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर या बैंक का चेयरमैन भी हो सकता है।
वेतन-भत्तों का आकर्षण
शुरू से ही बैंक के वेतन और भत्ते युवाओं के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में प्रोबेशनरी  ऑफिसर का वेतनमान 10,000-18,240  रुपये होता है और कमोबेश स्पेशलिस्ट ऑफिसर्स का वेतनमान भी पीओ के समान है। वहीं क्लर्क का वेतनमान 4,410-13,210  रुपये है। इसके अलावा कई तरह के भत्ते भी मिलते हैं।
बूम  की वजह
सभी बैंक अपनी गतिविधियों में विविधता ला रहे हैं। वे नई-नई सेवाओं की शुरुआत कर रहे हैं, जैसे- क्रेडिट कार्ड, कंज्यूमर फाइनेंस, वेल्थ मैनेजमेंट, लाइफ व जनरल इंश्योरेंस, इन्वेस्टमेंट बैंकिंग, म्यूचुअल फंड्स, पेंशन फंड रेग्युलेशन, स्टॉक ब्रोकिंग सेवाएं, प्राइवेट इक्विटी आदि। इन सेवाओं के सुचारु संचालन के लिए भी लोगों की आवश्यकता बढ गई है। वर्ष 2002 में बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड (बीएसआरबी) के भंग होने के बाद एक तरह से बैंकिंग सेक्टर में नई नियुक्तियों पर विराम सा लग गया। इसी दौरान वॉलंटरी रिटायरमेंट स्कीम (वीआरएस) को बैंकों में मंजूरी मिलने के बाद भी रिक्त पदों की संख्या बढ गई। इसके अलावा वित्तीय समायोजन के लिए सभी बैंकों को अपनी शाखाएं बढाने की आवश्यकता है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में अपनी गतिविधियों के विस्तार के लिए भी यहां लोगों की आवश्यकता है। कुछ माह पूर्व ही देश के सबसे बडे बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी शाखाओं की संख्या दस हजार तक पहुंचा दी। एसबीआई ने नए केंद्रों पर अपनी उपस्थिति बढाने के लिए इस साल एक हजार नई शाखाएं खोलने की योजना बनाई है। इससे बैंक की शाखाओं की कुल संख्या बढकर 13,000  हो जाएगी। इसके अलावा अपने एटीएम की चालू वित्त वर्ष के अंत तक संख्या बढाकर 25,000  करने का लक्ष्य रखा है।
जॉब की बहार लाने वाले बैंक
वैसे तो देश में जॉब उपलब्ध कराने वाले बैंकों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अग्रणी हैं, पर निजी बैंक भी आकर्षक पैकेज पर भर्तियां करने में पीछे नहीं हैं :
एसबीआई एवं असोसिएट बैंक
इसमें भारतीय स्टेट बैंक व उनके सात सहयोगी बैंक शामिल हैं। सहयोगी बैंक हैं- स्टेट बैंक ऑफ इंदौर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर व जयपुर एवं स्टेट बैंक ऑफ त्रावनकोर।
अन्य नेशनलाइज्ड बैंक
इसमें कुल 19 बैंक हैं। इलाहाबाद बैंक, आंध्रा बैंक, बैंक ऑफ बडौदा, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, कॉर्पोरेशन बैंक, देना बैंक, इंडियन बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, पंजाब ऐंड सिंध बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, सिंडिकेट बैंक, यूको बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया व विजया बैंक।
अन्य स्वायत्तशासी बैंक
आईडीबीआई बैंक लिमिटेड।
निजी व विदेशी बैंक
देश में कुल 27 निजी क्षेत्र के बैंक तथा कई विदेशी बैंक हैं। निजी बैंक- आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक आदि। विदेशी बैंक-सिटी बैंक, एचएसबीसी आदि।
ग्रामीण व कोऑपरेटिव बैंक
इसमें अधिकांश बैंक केंद्र सरकार व राज्य सरकार के कोऑपरेटिव बैंक होते हैं, जबकि ग्रामीण बैंक नेशनलाइज्ड बैंकों के ही होते हैं।
जोश डेस्क 
दैनिक जागरण  

Saturday, October 16, 2010

         on October 15th, 2010
 
 

2010-Commonwealth-Games


The following is the final medals tally at the end of the 2010 Commonwealth Games here Thursday.
Rank.Nation G S B Total
1.Australia 74 55 48 177
2.India 38 27 36 101
3.England 37 59 46 142
4.Canada 26 17 32 75
5.South Africa 12 11 10 33
6.Kenya 12 11 9 32
7.Malaysia 12 10 13 35
8.Singapore 11 11 9 31
9.Nigeria 11 10 14 35
10.Scotland 9 10 7 26
11.New Zealand 6 22 8 36
12.Cyprus 4 3 5 12
13.Northern Ireland 3 3 4 10
14.Samoa 3 0 1 4
15.Wales 2 7 10 19
16.Jamaica 2 4 1 7
17.Pakistan 2 1 2 5
18. Uganda 2 0 0 2
19.Bahamas 1 1 3 5
20.Sri Lanka 1 1 1 3
21.Nauru 1 1 0 2
22.Botswana 1 0 3 4
23St.Vincent& Grenadines 1 0 0 1
24.Cayman Islands 1 0 0 1
25.Trinidad and Tobago 0 4 2 6
26.Cameroon 0 2 4 6
27.Ghana 0 1 3 4
28.Namibia 0 1 2 3
29.Papua and Guinea 0 1 0 1
30.Seychelles 0 1 0 1
31.Tonga 0 0 2 2
32.Isle of Man 0 0 2 2
33.Mauritius 0 0 2 2
34.Guyana 0 0 1 1
35.Bangladesh 0 0 1 1
36.Saint Lucia 0 0 1 1
Total 272 274 282 828





Names of Indian medal winners at CWG
     on October 15th, 2010

CWG GOld Winners

The following are the names of Indian medal winners in various disciplines at the 2010 Commonwealth Games:
Discipline-wise Gold, Silver and Bronze winners
Archery:
Gold
Rahul Banerjee – men’s recurve (Individual)
Deepika Kumari, Dola Banerjee, Bombayala Devi – women’s recurve (Team)
Deepika Kumari – women’s recurve (Individual)
Silver
Chinna Raju, Jignesh Chittibomma, Ritul Chaterjee – men’s compound (Team)
Bronze
Jayanta Talukdar – men’s recurve (Individual)
Gagandeep Kaur, Jhanu Hansda, Bheigyabati Chanu – women’s compound (Team)
Dola Banerjee – women’s recurve (Individual)
Jayanta Talukdar, Rahul Banerjee, Tarundeep Rai – men’s recurve
Athletics:
Gold
A.C. Ashwini, Manjeet Kaur, Mandeep Kaur and Sini Jose – women’s 4×400m Relay
Krishna Poonia – women’s discus throw
Silver
Vikas Shive Gowda – Men’s discus throw
Harwant Kaur – women’s discus throw
Prajusha Maliakkal – women’s long jump
Bronze
Kashinath Naik – men’s javelin throw
Seema Antil – women’s discus throw
M. Rahamatulla, Sathya Suresh, Shameermon and Abdul Najeeb Qureshi – men’s 4×100m relay
S. Geetha, Srabani Nanda, P.K. Priya and H.M. Jyothi – women’s 4×100m relay
Renjith Maheswary – men’s triple jump
Kavita Raut – women’s 10,000m
Harminder Singh – men’s 20 Km race walk
Aquatics:
Bronze
Prasanta Karmakar, para sport – men’s 50m freestyle,S9
Badminton:
Gold
Saina Nehwal – women’s singles
Jwala Gutta and Ashwini Ponnappa – women’s doubles
Silver
Saina Nehwal, Parupalli Kashyap, Chetan Anand, Jwala Gutta, V.Diju, Ashwini Ponnappa, Rupesh Kumar, Sanave Thomas – mixed team
Bronze
Parupalli Kashyap – men’s singles
Boxing:
Gold
Manoj Kumar (64kg)
Suranjoy Mayengbam (52 kg)
Paramjeet Samota (+91kg)
Bronze
Jai Bhagwan (60kg)
Amandeep Singh (49kg)
Dilbag Singh (69kg)
Vijender Singh (75kg)
Gymnastics (Artistic):
Silver
Ashish Kumar – men’s vault
Bronze
Ashish Kumar – men’s floor
Hockey:
Silver
Men’s team
Shooting:
Gold
Omkar Singh, Gurpreet Singh – men’s 10m air pistol (Pairs)
Gagan Narang and Abhinav Bindra – men’s 10m air rifle (Pairs)
Vijay Kumar and Harpreet Singh – men’s 25m centrefire pistol (Pairs)
Vijay Kumar and Gurpreet Singh – men’s 25m rapid fire pistol (Pairs)
Gagan Narang and Imran Hasan Khan – men’s 50m rifle 3 positions (Pairs)
Heena Sindu and Anuraj Singh – women’s 10m air pistol (Pairs)
Anisa Sayyed and Rahi Sarnobat – women’s 25m pistol (Pairs)
Vijay Kumar – men’s 25m rapid fire pistol
Gagan Narang – men’s 10m air rifle
Gagan Narang – men’s 50m rifle 3 positions
Anisa Sayyed – women’s 25m pistol
Harpreet Singh – men’s 25m centrefire pistol (Singles)
Omkar Singh – men’s 10m air pistol
Omkar Singh – men’s 50m pistol
Silver
Abhinav Bindra – men’s 10m air rifle
Samresh Jung, Chandrasekhar Kumar Chaudary – men’s 25m standard pistol (Pairs)
Omkar Singh and Deepak Sharma – men’s 50m pistol (Pairs)
Ronjon Sodhi and Asher Noria – men’s double trap (Pairs)
Mansher Singh and Manavjot Singh Sandhu – men’s trap (Pairs)
Tejaswani Sawant and Lajja Gauswami – women’s 50m rifle 3 positions (Pairs)
Vijay Kumar – men’s 25m centrefire pistol (Singles)
Rahi Sarnobat – women’s 25m pistol
Tejaswini Sawant – women’s 50m rifle prone (Singles)
Heena Sidhu – women’s 10m air pistol
Ronjan Sodhi – men’s double trap
Bronze
Suma Shirur and Kavita Yadav – women’s 10m air rifle (Pairs)
Meena Kumari and Tejaswani Sawant – women’s 50m prone rifle (Pairs)
Samaresh Jung – men’s 25m standard pistol (Singles)
Manavjit Singh Sandhu – men’s trap (Singles)
Gurpreet Singh – men’s 25m rapid fire pistol
Table Tennis:
Gold
Sharath Kamal and Subhajit Saha – men’s doubles
Silver
Poulomi Ghatak, Mouma Das, Shamini Kumaresan, Madhurika Patkar, Mamta Prabhu – women’s team
Bronze
Sharath Kamal – men’s singles
Sharath Kamal, Soumyadeep Roy, Subhajit Saha, Amalraj Anthony and Abhishek Ravichandran – men’s team
Poulomi Ghatak and Mouma Das – women’s doubles
Tennis:
Gold:
Somdev Devvarman – men’s singles
Silver
Sania Mirza – women’s singles
Bronze
Leander Paes and Mahesh Bhuptahi – men’s doubles
Sania Mirza and Rushmi Chakravarthi – women’s doubles
Weightlifting:
Gold
Ravi Kumar Katulu – men’s 9kg
Renu Bala Chanu – women’s 58kg
Silver
Soniya Chanu – women’s 48kg
Sukhen Dey – men’s 56kg
Bronze:
Rani Devi Sandhya – women’s 48kg
Sudhir Kumar Chitradurga – men’s 77kg
Monika Devi Laishram – women’s 75kg
V.S. Rao – men’s 56kg
Wrestling:
Gold
Anita – women’s 67kg free style
Yogeshwar Dutt – men’s 60kg free style
Geeta – women’s 55kg free style
Sushil Kumar – men’s 66kg free style
Alka Tomar – women’s 59kg free style
Narsingh Panch Yadav – men’s 74kg free style
Anil Kumar – men’s 96kg (greco roman)
Rajender Kumar – men’s 55kg (greco roman)
Sanjay – men’s 74kg (greco roman)
Ravinder Singh – 60kg men’s (greco roman)
Silver
Nirmala Devi – women’s 48kg free style
Anuj Kumar – men’s 84kg free style
Joginder Kumar – men’s 120kg free style
Babita Kumari – women’s 51kg free style
Manoj Kumar – men’s 84kg (greco roman)
Bronze
Anil Kumar – men’s 55kg free style
Suman Kundu – women’s 63kg free style
Dharmender Dalal – men’s 120kg (greco roman)
Sunil Kumar – men’s 66kg (greco roman)
                                                ( way2sms )