Atreya


Monday, August 30, 2010


                           पढ़ें पढ़ाने के लिए

 



 

इन दिनों टीचिंग का प्रोफेशन युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हो रहा है। छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद सैलरी भी काफी बढ गई है। यदि अच्छी सैलरी के साथ ही समाज में प्रतिष्ठा चाहते हैं, तो लेक्चरर बनना आपके लिए बेस्ट है। लेकिन कॉलेजों में लेक्चरर या रीडर बनने के लिए आपको सीएसआईआर द्वारा आयोजित परीक्षा पास करनी होगी। हाल ही में लेक्चररशिप पद की पात्रता प्राप्त करने के लिए सीएसआईआर यानी कि काउंसिल ऑफ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ने साइंस स्ट्रीम के स्टूडेंट्स के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं। ऑनलाइन आवेदन करने की अंतिम तिथि 31 अगस्त तथा परीक्षा की तिथि 19 दिसंबर, 2010 है।

जेआरएफ और नेट
इस परीक्षा में एक परीक्षा के माध्यम से दो तरह की मेरिट लिस्ट बनाई जाती है। जो साइंस के स्टूडेंट्स इस परीक्षा में सबसे अधिक अंक लाते हैं, उनकी मेरिट लिस्ट बनाई जाती है और इनमें से कुछ को जूनियर रिसर्च फेलोशिप यानी जेआरएफ और शेष को नेट यानी नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट के लिए चुना जाता है। जेआरएफ में चुने गए स्टूडेंट्स को रिसर्च के लिए स्कॉलरशिप दी जाती है, जबकि नेट क्वालीफाई को स्कॉलरशिप नहीं दी जाती। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करनेवाले स्टूडेंट्स ही लेक्चरर या रीडर पद के योग्य होते हैं।
शैक्षिक योग्यता
सामान्य अभ्यर्थियों के लिए संबंधित विषय में कम से कम 55 प्रतिशत अंकों के साथ किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय या संस्थान से साइंस विषयों यानी कि केमिकल साइंस, अर्थ एटमॉस्फेरिक  ओशन ऐंड प्लानैटेरी साइंसेज, लाइफ साइंस, मैथेमेटिकल साइंसेज और फिजिकल साइंसेज में पीजी  अनिवार्य है। इस परीक्षा के लिए आरए यानी कि रिजल्ट अवैटेड कैंडिडेट भी आवेदन कर सकते हैं। एससी, एसटी तथा समाज के विकलांग व्यक्तियों के लिए 50 प्रतिशत अंकों से स्नातकोत्तर होना जरूरी है।
उम्र सीमा
एलएस यानी कि लेक्चरर पद की पात्रता प्राप्त करने की चाह रखने वाले अभ्यर्थियों के लिए उम्र सीमा का कोई बंधन नहीं है, वहीं जेआरएफ के लिए उम्र सीमा सामान्य उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम 19 और अधिकतम 28 वर्ष है, जबकि एससी, एसटी तथा विकलांग व्यक्तियों को अधिकतम उम्र सीमा में पांच वर्ष की छूट का प्रावधान है।
परीक्षा का स्वरूप
चार सौ अंकों की लिखित परीक्षा दो चरणों में होगी। इसमें दो प्रश्नपत्र होंगे। दोनों पेपर दो-दो सौ अंकों के होंगे। प्रत्येक पेपर के लिए ढाई घंटे निर्धारित किए गए हैं। जो अभ्यर्थी प्रथम प्रश्नपत्र में सीएसआईआर द्वारा निर्धारित न्यूनतम अर्हक अंक लाने में सफल होंगे, उन्हीं अभ्यर्थियों के दूसरे पेपर का मूल्यांकन किया जाएगा।
प्रिपरेशन स्ट्रेटेजी
प्रथम चरण के पेपर ऑब्जेक्टिव टाइप के होते हैं। इसमें अवेयरनेस ऑफ जेनरल साइंस, एप्टीट्यूड  ऑफ साइंटिफिक ऐंड क्वांटेटिव रीजनिंग और कम्प्यूटर से संबंधित प्रश्न होते हैं। इसकी तैयारी के लिए एनसीईआरटी की ग्यारहवीं और बारहवीं के साइंस पुस्तकों का गहन अध्ययन करें। यदि आप बेहतर तैयारी करते हैं, तो इसमें से बीस प्रश्न आसानी से बना सकते हैं। अपने विषय की तैयारी के लिए सबसे पहले महत्वपूर्ण अध्याय को एक जगह नोट कर लें। इस लिस्ट में उन्हीं को शामिल करें, जिससे हर वर्ष या सर्वाधिक प्रश्न पूछे जा रहे हैं। यदि चाहें, तो इस संबंध में सीनियर्स या कोचिंग की मदद ले सकते हैं। अक्सर देखा जाता है कि प्रथम पेपर क्वालीफाइंग होने के कारण स्टूडेंट्स इसकी तैयारी गंभीरता से नहीं करते हैं। यदि आपको इस परीक्षा में सफल होना है, तो दोनों पेपर की तैयारी गंभीरता से करनी होगी। आपके लिए बेहतर होगा कि पिछले पांच वर्षो के प्रश्नपत्रों को लें और देखें कि किस तरह के प्रश्न पूछे जा रहे हैं। यह कहना है इनमास डीआरडीओ के साइंटिस्ट सतीश चंद्रा का। यदि टेक्नोसेवी हैं, तो कम्प्यूटर से भी प्रश्नों को डाउनलोड कर सकते हैं।
सब्जेक्ट है अहम
दूसरा पेपर सब्जेक्ट से संबंधित होता है। इसके अंक मेरिट लिस्ट निर्धारित करते हैं। यह पीजी  स्तर का होता है। इस कारण जिस विषय से आप एमएससी हैं, उसके सिलेबस और विषय की समझ तो आपको पहले से ही होगी। अब सिर्फ आपको इस परीक्षा को ध्यान में रखकर तैयारी करनी है। बेहतर स्ट्रेटेजी यह होगी कि आप प्रामाणिक पुस्तकों का अध्ययन करें। उसके बाद संक्षिप्त नोट्स बनाएं और उसी को बार-बार पढें। इस तरह की रणनीति अपनाने से फायदा यह होगा कि आप कम समय में बेहतर तैयारी कर पाएंगे और परीक्षा के समय बेहतर प्रदर्शन करेंगे। बाजार में इसके लिए नोट्स भी मिलते हैं। यदि आप चाहें, तो इसकी भी सहायता ले सकते हैं। परीक्षा हॉल में टू द प्वाइंट उत्तर लिखने के लिए आप जिस प्रश्न का उत्तर देना चाहते हैं, उसका सबसे पहले एक रफ कॉपी में यह लिख लें कि मुझे इन्हीं प्वॉइंट्स के भीतर प्रश्नों का उत्तर देना है। इससे आप भटकाव से बच जाएंगे। ऑब्जेक्टिव टाइप के प्रश्नों में अभ्यर्थियों के समक्ष तीन तरह के प्रश्न रहते हैं। पहला-आसान, दूसरा-50-50 और तीसरा लकी। विशेषज्ञों के अनुसार, प्राय: सभी परीक्षाओं में निगेटिव मार्किंग का प्रावधान होता है। इस कारण दो विकल्प अपनाना तो कारगर हो सकता है, लेकिन तीसरे विकल्प को अपनाना घातक होता है। परीक्षा में सफल होने के लिए जरूरी है कि दो विकल्पों का ही उपयोग करें। यदि आप इस परीक्षा और सिलेबस के बारे में विस्तृत रूप से जानना चाहते हैं, तो वेबसाइट WWW. csirhrdg.res.in देख सकते हैं।
सीएसआईआर नेट/जेआरएफ परीक्षा
आवेदन की अंतिम तिथि : 31 अगस्त
परीक्षा तिथि : 19 दिसंबर, 2010
वेबसाइट : WWW. csirhrdg.res.in

विजय झा ( दैनिक जागरण )

Sunday, August 29, 2010

क्या हैं वेद, पुराण और उपनिषद?

 युवाओं के लिए धार्मिक ग्रंथ यानी वेद, पुराण, उपनिषद आदि एक अबूझ पहेली जैसे हैं। ये ग्रंथ क्यों हैं और किस लिए बनाए गए हैं, यह अधिकतर युवाओं की समझ से बाहर है। इन ग्रंथों की पारंपरिक शैली और कठिन भाषा के कारण इन्हें समझना और ज्यादा मुश्किल हो गया है। पुराणों में अधिकांश कहानियां प्रतीकात्मक हैं। अभी तक कई लोगों को यह भी पता नहीं है कि इन किताबों में है क्या? वेद, पुराण और उपनिषदों में आखिर ऐसा क्या है जो पढ़ने लायक है और इन किताबों को पढ़कर क्या सीखा, समझा जा सकता है? इनमें पढ़ने लायक क्या है?

आइए हम आपको इन ग्रंथों से परिचित कराते हैं:-
वेद - वेद चार हैं, ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। इन्हें दुनिया की सबसे पुरानी पुस्तकें माना गया है। नासा ने भी इसकी प्रामाणिकता स्वीकार की है। ये चारों वेद एक ही वेद के चार भाग हैं, जिन्हें वेद व्यास ने संपादित किया है। ऋग्वेद में सृष्टि की परिस्थितियों, देवताओं आदि की स्थितियों के बारे में विवरण है। सामवेद ऋग्वेद का ही गेय रूप है, इसके सारे श्लोक गेय यानी संगीतमय या गीतमय हैं। यजुर्वेद - यजुर्वेद में यज्ञ संबंधी श्लोक हैं, यज्ञों की विधियां और उससे देवताओं को प्रसन्न करने संबंधी विधियां हैं। अथर्ववेद - इस वेद में परा शक्तियों यानी पारलौकिक शक्तियों के श्लोक हैं।
उपनिषद - उपनिषद को यह नाम इसलिए मिला है क्योंकि ये वेदों के ही हिस्से हैं। वेदों से ही प्रेरित इन उपनिषदों की रचना वेदव्यास के ही चार शिष्यों ने की है। मूलत: 108 उपनिषद माने जाते हैं। उपनिषद का अंग्रेजी में अर्थ है कॉलोनी। जैसे शहर के ही किसी एक हिस्से को कॉलोनी कहते हैं, वैसे ही उपनिषदों को भी वेदों का ही हिस्सा माना जाता है। वेदों के ही श्लोकों को कथानक के रूप में उपनिषदों में लिया जाता है।
पुराण - पुराण पिछले युगों सतयुग, त्रेता और द्वापर युग की कथाओं का विवरण हैं। इनकी भी रचना वेद व्यास और उनके समकालीन ऋषियों द्वारा की गई है। ये मूलत: पौराणिक पात्रों की कथाओं के ग्रंथ हैं। पुराणों की संख्या 18 मानी गई है। कालांतर में कई ग्रंथ बढ़ गए हैं।

 

वेद : दुनिया की सबसे पुरानी किताबें

 

वेद दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं। इन चार वेदों में जीवन के गूढ़ रहस्य छिपे हैं। ये मूलत: विचारों के ग्रंथ हैं, इस कारण इन्हें सारी संस्कृति विशेष रूप से आर्य संस्कृति के प्रारंभिक ग्रंथ माना गया है। वेद ज्ञान का भंडार हैं, विज्ञान हो या खगोल शास्त्र, यज्ञ विधि या देवताओं की स्तुति सभी चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद) में है।

वेद का शाब्दिक अर्थ है ज्ञान या जानना। वेदों को पूरे विश्व में सबसे पुराने ग्रंथों के रूप में मान्यता मिल चुकी है। वेदों को श्रुति भी कहा जाता है, श्रुति यानी सुनकर लिखा गया। माना जाताहै कि ऋषि-मुनियों ने इन ग्रंथों को खुद ब्रह्मा से सुन कर लिखा था। वेदों की ऋचाओं (मंत्रों) में कई प्रयोग और सूत्र हैं। खगोल, विज्ञान, आयुर्वेद, तकनीकी हर क्षेत्र के लिए विभिन्न मंत्र हैं। नासा ने भी वेदों में छिपे ज्ञान को प्रामाणिक माना है। उपनिषदों का रचनाकाल करीब 4000 साल पुराना है, इस आधार पर यह माना जाता है कि वेदों का रचनाकाल 5000 हजार वर्ष से भी पूर्व का है।

ऋग्वेद : ऋग्वेद सबसे पहला वेद है। इसमें धरती की भौगोलिक स्थिति, देवताओं के आवाहन के मंत्र हैं। इस वेद में 1028 ऋचाएँ (मंत्र) और 10 मंडल (अध्याय) हैं।

यजुर्वेद : यजुर्वेद में यज्ञ की विधियाँ और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। इस वेद की दो शाखाएँ हैं शुक्ल और कृष्ण। 40 अध्यायों में 1975 मंत्र हैं।

सामवेद : इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं (मंत्रों) का संगीतमय रूप है। इसमें मूलत: संगीत की उपासना है। इसमें 1875 मंत्र हैं।

अथर्ववेद :इस वेद में रहस्यमय विद्याओं के मंत्र हैं, जैसे जादू, चमत्कार, आयुर्वेद आदि। यह वेद सबसे बड़ाहै, इसमें 20 अध्यायों में 5687 मंत्र हैं।

पहले एक ही थे वेदः
ऐसा प्रचलित है कि पहले वेद चार भागों में नहीं थे। ये एक ही थे। विद्वानों का मानना है कि महाभारत काल के बाद श्रीकृष्णद्वैपायन व्यास (वेदव्यास) ने इन्हें चार भागों में बाँटा। उनके चार शिष्य जो अपने समय के महान संत हुए, पैल, वैश्यंपायन, जैमिनि और सुमंतु ने उनसे इनकी शिक्षा पाई थी। इसके बाद इन चार वेदों ही चलन हुआ। कई विद्वानों का यह भी मानना है कि वेद ब्रह्मा की मानसपुत्री गायत्री से उत्पन्न हुए हैं। गायत्री ही इन वेदों की रचनाकार भी मानी गई हैं।
        ( दैनिक भास्कर )


 

 

 

  * आरती क्यों और कैसे ? *



पूजा के अंत में हम सभी भगवान की आरती करते हैं। आरती के दौरान कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि न केवल आरती करने, बल्कि इसमें शामिल होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें 3बार पुष्प अर्पित करें। इस दरम्यान ढोल, नगाडे, घडियाल आदि भी बजाना चाहिए।

एक शुभ पात्र में शुद्ध घी लें और उसमें विषम संख्या [जैसे 3,5या 7]में बत्तियां जलाकर आरती करें। आप चाहें, तो कपूर से भी आरती कर सकते हैं। सामान्य तौर पर पांच बत्तियों से आरती की जाती है, जिसे पंच प्रदीप भी कहते हैं। आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरा धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग [मस्तिष्क, दोनों हाथ-पांव] से। पंच-प्राणों की प्रतीक आरती हमारे शरीर के पंच-प्राणों की प्रतीक है।

आरती करते हुए भक्त का भाव ऐसा होना चाहिए, मानो वह पंच-प्राणों की सहायता से ईश्वर की आरती उतार रहा हो। घी की ज्योति जीव के आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है। यदि हम अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं, तो यह पंचारतीकहलाती है। सामग्री का महत्व आरती के दौरान हम न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी हैं।

कलश-कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान बिल्कुल खाली होता है। कहते हैं कि इस खाली स्थान में शिव बसते हैं।
यदि आप आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप शिव से एकाकार हो रहे हैं। किंवदंतिहै कि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है।

जल-जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं।

नारियल- आरती के समय हम कलश पर नारियल रखते हैं। नारियल की शिखाओं में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार पाया जाता है। हम जब आरती गाते हैं, तो नारियल की शिखाओं में मौजूद ऊर्जा तरंगों के माध्यम से कलश के जल में पहुंचती है। यह तरंगें काफी सूक्ष्म होती हैं।

सोना- ऐसी मान्यता है कि सोना अपने आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाता है। सोने को शुद्ध कहा जाता है।
यही वजह है कि इसे भक्तों को भगवान से जोडने का माध्यम भी माना जाता है।

तांबे का पैसा- तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अधिक होती है। कलश में उठती हुई लहरें वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। कलश में पैसा डालना त्याग का प्रतीक भी माना जाता है। यदि आप कलश में तांबे के पैसे डालते हैं, तो इसका मतलब है कि आपमें सात्विक गुणों का समावेश हो रहा है।

सप्तनदियोंका जल-गंगा, गोदावरी,यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरीऔर नर्मदा नदी का जल पूजा के कलश में डाला जाता है। सप्त नदियों के जल में सकारात्मक ऊर्जा को आकृष्ट करने और उसे वातावरण में प्रवाहित करने की क्षमता होती है। क्योंकि ज्यादातर योगी-मुनि ने ईश्वर से एकाकार करने के लिए इन्हीं नदियों के किनारे तपस्या की थी। सुपारी और पान- यदि हम जल में सुपारी डालते हैं, तो इससे उत्पन्न तरंगें हमारे रजोगुण को समाप्त कर देते हैं और हमारे भीतर देवता के अच्छे गुणों को ग्रहण करने की क्षमता बढ जाती है। पान की बेल को नागबेलभी कहते हैं।

नागबेलको भूलोक और ब्रह्मलोक को जोडने वाली कडी माना जाता है। इसमें भूमि तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है। साथ ही, इसे सात्विक भी कहा गया है। देवता की मूर्ति से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा पान के डंठल द्वारा ग्रहण की जाती है।

तुलसी-आयुर्र्वेद में तुलसी का प्रयोग सदियों से होता आ रहा है। अन्य वनस्पतियों की तुलना में तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता अधिक होती है। -[मीता जिंदल]     ( दैनिक जागरण )