Atreya


Sunday, October 28, 2012

बेहतरीन कॅरियर की गारंटी 

 



सरकारी नौकरी हर कोई चाहता है, लेकिन सफलता सभी को नहीं मिलती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इसमें सीट काफी कम होती हैं, लेकिन अभ्यर्थियों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। रेलवे ने हाल ही में ग्रुप डी पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं। रेलवे कर्मचारियों को केंद्रीय कर्मचारी के सभी फायदे मिलते ही हैं, इसके साथ ही आने-जाने की सुविधाएं और रहने के लिए आवास भी मिल जाता है। यदि आप भी रेलवे से जुडना चाहते हैं, तो आपके लिए सुनहरा अवसर है। कुल पदों की संख्या 2018 है। आवेदन करने की अंतिम तिथि 23 नवंबर, 2012 है।
 
क्या है रेलवे की खासियत
रेलवे में नौकरी करने का एक अलग ही क्रेज होता है। इसकी सबसे बडी विशेषता यह होती है कि आप और आपके परिवार को आने जाने में सुविधा मिलती है और रहने के लिए भी प्राय: सभी को आवास दिए जाते हैं। आजकल प्राइवेट नौकरी में बेहतर सैलरी मिलने के बावजूद लोग केंद्रीय विद्यालय में अपने स्टूडेंट्स को नहीं पढा पाते हैं, लेकिन रेलवे के कर्मचारियों के लिए विशेष सुविधाएं होती है। इसके अलावा छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद छोटे कर्मचारियों के वेतन भी काफी बढ गए हैं।
 
अपेक्षित योग्यता
रेलवे में एंट्री के लिए न्यूनतम आईटीआई या दसवीं पास उत्तीर्ण होना जरूरी है। रेलवे में ग्रुप डी के लिए उम्र सीमा भी निर्धारित है। अगर आप आरक्षण के दायरे में आते हैं, तो अधिकतम उम्र सीमा में छूट का प्रावधान भी है।
 
होगी लिखित परीक्षा
सबसे पहले लिखित परीक्षा होगी, जो ऑब्जेक्टिव टाइप की होगी। कुल समय 150 मिनट मिलेगा। इसके अंतर्गत जनरल अवेयरनेस, मैथमैटिक्स, जनरल साइंस व रीजनिंग से संबंधित पेपर होंगे। लिखित परीक्षा के बाद फिजिकल एफिसिएंसी टेस्ट होगा। फिजिकल एफिसिएंसी टेस्ट विकलांग व्यक्ति को छोडकर सभी अभ्यर्थियों के लिए अनिवार्य होगा। समाज के विकलांग व्यक्तियों के लिए पीईटी मेडिकल टेस्ट होगा, जिसमें विकलांगता से संबंधित प्रमाणिकता जांची जाएगी।
 
मानसिक और शारीरिक मजबूती जरूरी
इन पदों को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले शारीरिक रूप से तंदुरुस्त होना जरूरी है। जहां तक लिखित परीक्षा का सवाल है, तो इसकी तैयारी के लिए कम से कम एक राष्ट्रीय हिंदी न्यूज पेपर को रोज पढें। रेडियो या टीवी पर नियमित समाचार सुनने की आदत डालें। दसवीं तक की मैथ्स को बनाने का अभ्यास करें। इस परीक्षा की तैयारी के लिए बाजार में गाइड भी मिलती हैं। उसमें पिछले वर्षो में पूछे गए प्रश्न और उसका उत्तर भी होता है। आप तैयारी के लिए इस तरह की पुस्तकों से लाभ उठा सकते हैं।
 
पर्याप्त समय है तैयारी का मंत्र
अगर आप इस परीक्षा में सफल होना चाहते हैं, तो इसकी तैयारी के लिए अभी से ही जुट जाएं। बेहतर तैयारी तभी हो पाएगी, जब आप निर्धारित समय-सीमा के अंदर सभी प्रश्नों को हल करने की कोशिश करें। पहले निगेटिव मार्किग नहीं होने के कारण लोग प्रश्नों का उत्तर नहीं जानने के बाद भी अनुमान के आधार पर सभी प्रश्नों को हल कर लेते थे और संयोग से बहुत सारे प्रश्नों का उत्तर सही भी हो जाता था, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। अब निगेटिव मार्किग का प्रावधान है। इस कारण जिसका उत्तर आप सही जानते हैं, उसी को हल करें। अक्सर स्टूडेंट्स कम अंकों से ही उत्तीर्ण होने से वंचित रह जाते हैं। उसमें निगेटिव मार्किग का बहुत बडा योगदान होता है। आप पहले से ही सतर्क रहकर इस तरह की गलती से बच सकते हैं। इसके अतिरिक्त सफल होने के लिए जरूरी है कि आप भीड से हटकर अलग तरह से तैयारी करने की कोशिश करें। जब तक आप किसी भी परीक्षा की तैयारी के लिए गंभीर प्रयास नहीं करेंगे, तब तक सफलता आपसे रूठी ही रहेगी।
 
खुद को पहचानें
सभी व्यक्ति अपनी सोच व मानसिक क्षमताओं की वजह से विशिष्ट व अद्वितीय होते हैं। प्राय: जीवन में वही लोग असफल होते हैं, जो अपनी इस विशिष्टता की कद्र नहीं करते। वे अपनी विशिष्टता को ध्यान में रखे बगैर अपने कार्य क्षेत्र को चुनते हैं। यदि आप इनसे सीख लेते हुए लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सजग हैं, तो कोई कारण नहीं कि आप अपने उद्देश्यों में सफल न हो सकें। प्राय: लोग अपने जीवन में एक लक्ष्य को निर्धारित करते हैं और उसको प्राप्त करने के लिए कार्य भी करते हैं। परंतु अंत में ज्यादातर की यही शिकायत रहती है कि वे अमुक कारण व परिस्थितियों के चलते अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर सके। यदि ऐसे असफल लोगों के जीवन की पडताल की जाए, तो स्पष्ट हो जाएगा कि उन्होंने इसकी समुचित तैयारी नहीं की या बगैर ठीक प्रकार से विचार किए अपने कार्य क्षेत्र को चुना। आपके लिए जरूरी है कि पहले अच्छी तरह से विचार कर लें कि आपको किस क्षेत्र में जाना है। अगर एक बार लक्ष्य बना लिया है, तो शहद की मक्खियों की भांति इसके पीछे पड जाएं, सफलता आपके करीब होगी।
विजय झा

Sunday, October 14, 2012

हम साथ-साथ हैं

 

We-together

हम साथ-साथ हैं
अधिकतर बच्चे खाली समय में टीवी या कंप्यूटर से चिपके रहते हैं। माता-पिता अपना काम करते रहते है। ऐसे में क्या किया जाए कि दोनों का वक्त साथ-साथ कटे। आपके लिए कुछ सार्थक उपाय।
पकाएं-खाएं साथ-साथ
यह जरूरी नहीं है कि किचेन का सारा काम मम्मी ही करें। यदि आप पिज्जा बनाने जा रही है तो बच्चों को उनकी मनपसंद टॉपिंग सजाने का काम सौंपे। इससे बच्चे को नया सीखने का मौका मिलता है। साथ ही समय बिताने का भी।
देखें फिल्म
परिवार के साथ घर पर फिल्म देखने की बात ही कुछ और है। अगर पॉपकार्न और पकौड़े साथ में हों तो फिर कहना ही क्या..। बच्चों के साथ फिल्म देखने का आनंद ही कुछ अलग होता है। घर पर सिनेमाहाल जैसा माहौल पैदा करने के लिए कमरे की लाइट बंद कर दें और एक साथ बैठकर फिल्म देखें। इस दौरान सभी लोग अपने मोबाइल फोन बंद कर दें।
खेलो खेल
आपको याद है कि पिछली बार कब आप बच्चों के साथ इनडोर गेम्स में शामिल हुए थे। बहुत सारे ऐसे खेल होंगे जो आपने अपने बचपन के दौरान खेले होंगे। उन्हीं खेलों को दोहराने का समय फिर आ गया है। बच्चे भी अपने अभिभावकों को अपने साथ खेलते देखकर उत्साह से भर जाएंगे और वे खेल में कुछ नई और मनोरंजक तरकीबें अवश्य जोड़ेंगे।
गीत-संगीत का मजा
हो सकता है कि आपको या पति को कभी गाने या कोई वाद्ययंत्र बजाने का शौक रहा हो, लेकिन जिंदगी की आपाधापी में यह शौक पीछे छूट गया हो। यह भी हो सकता है कि आपके बच्चों को भी गाने-बजाने का शौक हो, लेकिन डर की वजह से उन्होंने कभी यह जाहिर न किया हो। देर किस बात की, कल संडे है तो संडे को मनाइए फन डे के रूप में। आपस में मिलकर गीत-संगीत का आनंद लें। यकीन मानिए मानसून का यह संडे आपके युवा दिनों को फिर से ताजा कर देगा। साथ ही बच्चों को मिलेगा आपका अनमोल समय और साथ।
पिकनिक का आनंद
कुछ नया चाहते है तो पैक करिए खाने का सामान और निकल जाइए पिकनिक मनाने। इस मौके को यादगार बनाने के लिए आप अपने खास लोगों को भी निमंत्रण दे सकती है।
इला शर्मा ***




Thursday, September 27, 2012

सैमसंग गैलेक्सी नोट 2 आज भारत में आएगा

Updated on: Thu, 27 Sep 2012 12:32 PM (IST)
 
Samsung Galaxy Note II coming to India today
 e- note by your hand


सैमसंग गैलेक्सी नोट 2 आज भारत में आएगा
नई दिल्ली। सैमसंग इंडिया ईस्टोर ने गैलेक्सी नोट 2 के लांच के लिए कमर कस ली है, उसने पिछले हफ्ते से केवल 5,000 रुपये में गैलेक्सी नोट 2 की प्रीबुकिंग प्रक्रिया शुरू कर दी थी।
सैमसंग इंडिया गैलेक्सी नोट के वारिस गैलेक्सी नोट 2 को आज भारत के हैदराबाद शहर में लांच करने के लिए पूरी तरह तैयार है। सैमसंग आधिकारिक रूप से गैलेक्सी नोट 2 स्मार्टफोन-टैबलेट हाइब्रिड पर से पिछले महीने आईएफए बर्लिन में सैमसंग मोबाइल इवेंट के दौरान पर्दा उठा चुका है।
सैमसंग गैलेक्सी नोट 2 में 5.5 इंची एचडी सुपर एमोल्ड डिसप्ले है और अंदर की ओर क्वाड-कोर मोबाइल प्रेसेसर है। वाई डिफाल्ट यह स्मार्टफोन-टैबलेट हाइब्रिड एंड्रॉयड 4.1 जैली बीन पर चलता है।
नोट 2 में अपने पूर्ववर्ती की तुलना में 0.2 इंची अधिक डिसप्ले है और इसमें अधिक शक्तिशाली हार्डवेयर के साथ ताकतवर बैटरी है।
इसका 5.5 इंची सुपर एमोल्ड टच स्क्त्रीन डिसप्ले 1280 X 720 पिक्सल रेजोल्यूशन को सपोर्ट करता है। इसकी तुलना में गैलेक्सी नोट में 5.3 इंची एचडी सुपर एमोल्ड टचस्क्रीन डिसप्ले नेटिव 1280 X 800 पिक्सल रेजोल्यूशन के साथ है।
अंतर पिक्सल घनत्व में है- जबकि नोट के डिसप्ले में पहली पीढ़ी के कोर्निंग गोरिल्ला ग्लास क्षमता के साथ 285 पीपीआई है, नए नोट 2 में 267 पीपीआई पिक्सल घनत्व वाला डिसप्ले दूसरी पीढ़ी के कोर्निंग गोरिल्ला ग्लास के साथ है।
सौजन्य से : The Mobile Indian

Wednesday, March 28, 2012

संस्कृत बनेगी नासा की भाषा
 
आदर्श नंदन गुप्त, आगरा: देवभाषा संस्कृत की गूंज कुछ साल बाद अंतरिक्ष में सुनाई दे सकती है। इसके वैज्ञानिक पहलू का मुरीद हुआ अमेरिका नासा की भाषा बनाने की कसरत में जुटा है। इस प्रोजेक्ट पर भारतीय संस्कृत विद्वानों के इन्कार के बाद अमेरिका अपनी नई पीढ़ी को इस भाषा में पारंगत करने में जुट गया है। गत दिनों आगरा दौरे पर आए अरविंद फाउंडेशन (इंडियन कल्चर) पांडिचेरी के निदेशक संपदानंद मिश्रा ने जागरण से बातचीत में यह रहस्योद्घाटन किया। उन्होंने बताया कि नासा के वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने 1985 में भारत से संस्कृत के एक हजार प्रकांड विद्वानों को बुलाया था। उन्हें नासा में नौकरी का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने बताया कि संस्कृत ऐसी प्राकृतिक भाषा है, जिसमें सूत्र के रूप में कंप्यूटर के जरिए कोई भी संदेश कम से कम शब्दों में भेजा जा सकता है। विदेशी उपयोग में अपनी भाषा की मदद देने से उन विद्वानों ने इन्कार कर दिया था। इसके बाद कई अन्य वैज्ञानिक पहलू समझते हुए अमेरिका ने वहां नर्सरी क्लास से ही बच्चों को संस्कृत की शिक्षा शुरू कर दी है। नासा के मिशन संस्कृत की पुष्टि उसकी वेबसाइट भी करती है। उसमें स्पष्ट लिखा है कि 20 साल से नासा संस्कृत पर काफी पैसा और मेहनत कर चुकी है। साथ ही इसके कंप्यूटर प्रयोग के लिए सर्वश्रेष्ठ भाषा का भी उल्लेख है। स्पीच थैरेपी भी : वैज्ञानिकों का मानना है कि संस्कृत पढ़ने से गणित और विज्ञान की शिक्षा में आसानी होती है, क्योंकि इसके पढ़ने से मन में एकाग्रता आती है। वर्णमाला भी वैज्ञानिक है। इसके उच्चारण मात्र से ही गले का स्वर स्पष्ट होता है। रचनात्मक और कल्पना शक्ति को बढ़ावा मिलता है। स्मरण शक्ति के लिए भी संस्कृत काफी कारगर है। मिश्रा ने बताया कि कॉल सेंटर में कार्य करने वाले युवक-युवती भी संस्कृत का उच्चारण करके अपनी वाणी को शुद्ध कर रहे हैं। न्यूज रीडर, फिल्म और थिएटर के आर्टिस्ट के लिए यह एक उपचार साबित हो रहा है। अमेरिका में संस्कृत को स्पीच थेरेपी के रूप में स्वीकृति मिल चुकी है।
 
 
 
 
 

मेरा वो गीत अनजानेपनं में लिखा गया

         मगर आत्मा के पास आकर बैठ गया 

                      हाय रोज़ याद आवे स...........


हाय रोज़ याद आवे स बचपन के दिन 
रह-रह के मुहं चिढावे स बचपन के दिन

मेरी एक किलकी  त, घर सिर प उठ ज्यां था
मैं खानी पीणी चीज़ां प, जद ए रूठ ज्यां था
स याद मैन्ने, मेरी थी तोतली जुबान
सुण ले था एक ब जो भी, होवे था हैरान
नाच्या करूं था पैरां में, घुंघरू बांध के
हो कितनी ऊँची चाहे चद ज्यूँ था कांध प
किसने फेर थ्यावे स, बचपन के दिन
हाय रोज़ याद आवे स ..........................

जाते स्कूल में हम, लेके पंजी दस्सी
ठंडा का फंड ना था, पिवा थे रोज़ लस्सी
वो सुलिया डंका और वो छुपम-छुपाई खेलना
माटी का घर बणाके माटी की रोटी बेलना
वो काटके न चप्पल, फेर पहिये बणाने
डंडी के साथ रेहडू, अर टायर चलाणे
आंख्या में आंसू ल्यावे स, बचपन के दिन
हाय रोज़ याद आवे स .......................

वा हरा समन्दर गोपीचन्द्र आळी कविता गाणी
फेर मछली त ए पुछना, बता दे कितना पाणी
वो गुल्ली डंडा अर वो कंच्या आल्ला खेल
वो चोर सिपाई अर वो नकली थाना जेल
वो लूटना पतंग का, अर गाम के उल्हाने
वो शर्त लाके नहरा पे, दिन में कई ब नहाने
उम्र भर रुलावे स बचपन के दिन
हाय रोज़ याद आवे स,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

ना दुःख कोए ना चिंता, ना फ़िक्र कोए गम
बालकपणे में सचमुच, बादशाह थे हम
इब चुन तेल लकड़ी और फंस रे सां भंवर में
चाल्ला सां रोज़ लेकिन रह रे सां घर की घर में
जीते जी मन की इब,  आरज़ू स याहे
बचपन सी वाहे मस्ती ,जीवन में फेर आये
बेचैन बणा जावे स , बचपन के दिन
हाय रोज़ याद आवे स ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
रह रह के मुहं चिढावे स ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


                                                  V.M.Bechain

Thursday, January 26, 2012

कॅरियर की सीधी गणित

कॅरियर की सीधी गणित
मैथ्स की महत्ता समाज में प्राचीनकाल से रही है और अक्सर देखा जाता है कि मैथ्स में अच्छे स्टूडेंट्स अन्य विषयों में भी बहुत अच्छे होते हैं। यही कारण है कि मैथ्स स्टूडेंट्स की पहुंच इंजीनियरिंग की परंपरागत ब्रांचेज के अलावा कंप्यूटर, कॉर्पोरेट व‌र्ल्ड, एडमिनिस्ट्रेशन, फाइनेंस व टीचिंग तक होती है। कैंडीडेट की मानसिक क्षमताओं क ी परख में मैथ्स की खास भूमिका देखते हुए सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में मैथ्स से संबधित प्रश्न अवश्य पूछे जाते हैं। इस विषय की सबसे बडी खासियत यह है कि इसमें रटकर नहीं, बल्कि समझकर ही एक्सपर्ट बना जा सकता है। खुद विशेषज्ञ मानते हैं कि स्कूली स्तर पर इस सब्जेक्ट में बेहतर अंक लाने का मतलब ही है बेहतर भविष्य व कॅरियर की भरपूर च्वाइसेस। तो वहीं दिमागी कसरत के लिहाज से भी गणित को कमतर नहीं आंका जा सकता, अखबारों, पत्रिकाओं में नंबर पजल्स, सुडोकू को मिलती प्रमुखता इसी बात को दर्शाता है। अब सरकार भी मानती हैकि तकनीक, आईटी, रक्षा, विज्ञान, मानव संसाधन, व्यापार समेत ज्यादातर क्षेत्रों में देश की तरक्की को तभी पर लेगेंगे कि जब भारतीय युवा, मैथ्स में बेहतर हों। ऐसे में गणित की ओर ज्यादा से ज्यादा युवाओं को आकर्षित करने के लिए हाल ही में भारत सरकार ने गणित के जादूगर श्रीनिवासन रामानुजन के 125वें जन्मदिवस के मौके पर 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष घोषित किया है। अब से हर साल 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाने की बात कही गई है।
 
सुलझाएं कॅरियर के सवाल
आज सभी यह मान चुके हैं कि विकास में साइंस एंड टेक का महत्वपूर्ण योगदान है। सभी तरह के रिसर्च और विकास की परिकल्पना साइंस की तरक्की पर ही निर्भर है। और साइंस मैथ्स के बिना अधूरी है। यही कारण है कि सभी देशों की सरकारें मैथ्स व साइंस के विकास के लिए अनेक तरह के प्रयास करती हैं। आज हम कंप्यूटर क्षेत्र में बेहतर मैथ्स की वजह से आगे हैं। सुपर थर्टी के संस्थापक आनंद कहते हैं कि पिछले कुछ समय से चीन ने मैथ्स के कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर धाक जमाई है, जिसका कारण हैउनका एक खास एजूकेशन स्ट्रक्चर-जहां गांव, कस्बा, जिला, शहर सभी स्तरों से मैथ्स टैलेंट को खंगाला व तराशा जाता है। हालांकि भारत में राष्ट्रीय गणित ओलंपियाड जैसे आयोजन जरूर इस दिशा में उम्मीदें जगाते हैं, लेकिन अभी भी इस दिशा में काफी कुछ किया जाना है। आज यदि हाईस्कूल, इंटर में आपके पास गणित सबजेक्ट है तो कॅरियर की ज्यादातर राहें आपके लिए खुली हुई हैं। इन राहों में भी कुछ विकल्प ऐसे हैं, जहां गणित में स्पेशलाइजेशन आपके कॅरियर में चार चांद लगा सकता है। यदि आपको भी गणित में रूचि हैं और इसी क्षेत्र में इंट्री लेने का मन बना रहे हैं तो यहां कुछ ऐसे ही डिमांडिंग सेक्टर दिए जा रहे हैं.
 
स्टेटिशियन: ऊंचा है कॅरियर का ग्राफ
किसी भी देश की प्रगति क ी तस्वीर जानने में आंकडों की सर्वाधिक उपयोगिता होती है। ये आंकडें देश में व्यापार की स्थिति, जीडीपी, मानव विकास, स्वास्थ्य, पर्यावरण, शिक्षा, संस्कृ ति जैसे तमाम क्षेत्रों की असल तस्वीर सामने लाते हैं। हाल ही में हुई जनगणना के तमाम दुर्लभ आंकडों का संग्रहण व प्रोसेसिंग सक्षम सांख्यिकीविदों के ही चलते संभव हुई है। ऐसे में वे सभी युवा, जो संाख्यिकीविद बन अपनी किस्मत संवारना चाहते हैं, उनके लिए यहां अच्छे अवसर हैं।
 
मैथ्स में महारत महत्वपूर्ण
इंजीनियरिंग की गिनती आज कोर सेक्टर में होती है। यह 12 वीं बाद युवाओं के सबसे पंसदीदा कॅरियर च्वाइसेस में एक है। लेकिन इसमें इंट्री तभी मिल सकेगी, जब आपकी मैथ्स स्ट्रॉन्ग हो। इंजीनियर को तो आधुनिक विश्वकर्मा भी कहा जाता है, क्योंकि कंस्ट्रक्शन व डेवलेपमेंट के क्षेत्रों में इनकी अहम भूमिका होती है। इंजीनियरिंग के अंतर्गत कई ब्रांचेज आती हैं। ऐसे में यदि आपके पास12वीं में गणित रही है और आप उसमें रुचि भी रखते हैं तो इंजीनियरिंग आपक ो कॅरियर के कुछ सर्वश्रेष्ठ विकल्प उपलब्ध करा सकती है।
 
कंप्यूटर: मैथ्स देती एडवांस मैथेड
कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में कोडिंग व कैलकुलेशन की जरूरत होती है। गणित में रुझान रखने वाले युवाओं के लिए यहां अच्छे अवसर हैं। यदि आपको मैथमेटिकल पजल्स सॉल्व करने में मजा आता है, अंको के इस खेल में खुद पर भरोसा है तो आप इस लाइन को प्रोफेशनल रंग दे सकते हैं। कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में अंडरगे्रजुएट, पीजी कार्स करके या फिर माइक्रोसॉफ्ट, ओरेकल के सर्टिफाइड कोर्स पूरा कर पैर जमाए जा सकते हैं।
 
कॅरियर का तेज कैलकुलेशन
अर्थव्यवस्था की तेज गति के बीच आज फाइनेंस, अकाउंटिंग जैसी चीजें तेजी से पॉपुलरिटी पा रही हैं। ठीक हैकि सीए, ऑडिटर बनने के लिए आप किसी स्ट्रीम विशेष में बंधे नहीं हैं, लेकिन कार्यक्षेत्र में आपको गणित की जरूरत हर कदम पर पडेगी। आज की तारीख में ऑडिटिंग, टैक्सेसन से जुडे लोंगों को ज्यादातर संस्थानों में हाथों-हाथ लिया जाता है।
ओआरए: अप्रोच रखेगी आगे
आज कॉरपोरेट सेक्टर में जबर्दस्त कंपटीशन के बीच कोई कंपनी किसी से पीछे नहीं रहना चाहती। कंपनियों व संस्थानों की इसी आपसी होड ने ऑपरेशन रिसर्च एनालिसस्ट के काम को बढत दिलाई है। दरअसल, ऑपरेशन रिसर्च एनालिसिस्ट, एप्लाइड मैथमेटिक्स व सामान्य विज्ञान दोनों ही क्षेत्रों से जुडा विषय है, जिसमें कॉरपोरेट समस्याओं के हल के लिए एडवांस एनालिटिकल मैथेड्स जैसे मैथमेटिकल मॉडलिंग, स्टेटिस्टिकल एनालिसिस जैसी चीजों का इस्तेमाल होता है। इन दिनों बडी संख्या में कंपनियां मार्केट में पकड बनाने के लिए इन्हीं ओआरए की मदद ले रही हैं। यदि आप भी इस क्षेत्र में बढने के इच्छुक हैं तो फिर मैथ्स की एडवांस नॉलेज के साथ कंप्यूटर स्किल्स को धारदार बनाएं।
 
टीचिंग: बिल्डिंग बैकबोन्स
आज भी मैथ्स की गिनती स्कूल लेवल पर सबसे प्रमुख सब्जेक्ट्स में होती है। यही कारण है कि मैथ्स टीचर की मांग सभी स्कूलों में रहती है। यह ऐसा सब्जेक्ट है, जिसे सभी लोग नहीं पढा सकते हैं। इस बीच यदि आप अपनी सुदृढ मैथ्स के जरिए भविष्य के वैज्ञानिक, इंजीनियर का जबर्दस्त टैलेंट पूल डेवलेप करना चाह रहे हैं तो टीचिंग आपके इन प्रयासों को परवाज देगी। उस पर शिक्षा क्षेत्र में बढे सरकारी कदमों के बीच मैथ्स में पीजी, एजेकूशन ग्रेजुएट युवाओं के पास टीचर बनने के पूरे मौके हैं। तो वहीं आप चाहें तो हायर लेवल पर लेक्चरर, प्रोफेसर के साथ प्राइवेट कोचिंग भी आपके कॅरियर को रौशन राह दे सकती है। इसके साथ ही साथ बैकिंग, रेलवे, एसएससी, एनडीए, सीडीएस जैसे कईप्रमुख एग्जाम्स हैं,जिन्हें क्वालीफाई करने के लिए आपको अच्छी मैथ्स की दरकार होगी।
 
एनबीएचएम स्कॉलरशिप
देश को गति व युवा कॅरियर को उडान देने में परमाणु ऊर्जा विभाग से संबद्ध एनबीएचएम स्कॉलरशिप्स प्रोग्राम्स का खासा महत्व है..
 
क्या होती चयन प्रक्रिया - आवेदकों को पहले लिखित परीक्षा में हिस्सा लेना होता है। इसकेबाद होने वाले इंटरव्यू को पास कर वे स्कॉलरशिप की पात्रता हासिल करते हैं।
 
कैस करें अप्लाई - स्कॉलरशिप एग्जाम के लिए आपको आवेदन पत्र जोनल कोऑर्डिनेटर के पास भेजना होता है। स्कॉलरशिप से संबधित बाकी जानकारियों व आवेदन के प्रारूप संबधी सूचनाएं www.nbhm.dag.gov.in पर पाई जा सकती हैं।
 
कौन हैं पात्र - वे अभ्यर्थी जो इस बेहद प्रतिष्ठित स्कॉलरशिप प्रोग्राम से जुडना चाहते हैं, उनकेपास गणित विषय में बीए, बीएससी, बीटेक, बीई, एमटेक आदि में से कोई डिग्री होना आवश्यक है (12वीं से लगातार फ‌र्स्ट डिवीजन अनिवार्य है)। यदि अभ्यर्थी बीएससी ऑनर्सहै तो सेकेंड डिवीजन छात्र भी इसमें एप्लाईकर सकते हैं।
 
अहम है राशि - इस स्कॉलरशिप प्रोग्राम में चुने गए कैंडीडेट्स को 16000 रुपए/ माह (प्रथम व द्वितीय वर्षके लिए) व बाद के सालों के लिए 18000रुपए/माह राशि प्रदान की जाती है।
 
प्रतिभा की पहचान जरूरी
जाने माने गणितज्ञ व सुपर थर्टी के संचालक आनंद कुमार मैथमेटिक्स के सरल व व्यवहारिक शिक्षण के पक्षधर हैं। वे मानते हैं कि भारत को यदि अपनी प्राचीन गणितीय परंपराओं को जारी रखना है तो बेहतर गणित शिक्षक व शिक्षण टेक्नोलॉजी पर फोकस करना होगा। पेश है आंनद कुमार से हुई हमारी बातचीत के कुछ अंश..
 
व्यवहारिक बने मैथ्स
गणित के शिक्षण को व्यवहारिक बना स्कूली स्तर पर छात्रों में गणित के प्रति उत्सुकता बढाई जा सकती है। वहीं ग्रामीण परिवेश में छात्रों की भाषा व उनके परिवेश में सवाल रचे जाएं तो बेहतर होगा।
 
व्हाई एंड हाउ को न करें नजरंदाज
आज कई छात्र फार्मूला रट कर सवाल हल कर रहे हैं। ऐसे में छात्र सवाल तो हल कर लेते हैं, लेकिन विषय की गहराई तक नहीं पहुंच पाते हैं। यदि शिक्षक व अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चों की गणित में स्वाभाविक रुचि पैदा हो तो बच्चों के ऐसा कैसे हुआ? के प्रश्नों को दरकिनार न करें।
 
बेहतर टीचर हैं आवश्यक
गणित के मेधावी छात्र तभी तैयार हो सकेंगे, जब उनको दिशा देने वाले हाथ सतर्क व प्रतिभावान होंगे। लेकिन आज देश में स्कूली स्तर पर अच्छी मैथ्स फैकेल्टी का अभाव है। ऐसे में जरूरी हैकि अध्यापकों के लिए प्रभावी ट्रेनिंग कोर्स आयोजित हों, जहां उन्हें एंडवास टीचिंग मैथेड्स से अवगत कराए जाए।
 
टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल जरूरी
गणित की टीचिंग व लर्निग में टेक्नोलॉजी प्रभावी भूमिका निभा सकती है। मल्टीमीडिया, एनीमेशन, प्रोजेक्टर, कंप्यूटर गेम्स आदि की मदद से मैथ्स लर्निग आसान व इंट्रेस्टिंग बनाईजा सकती है।
 
इंटरनेशनल मैथमेटिक्स ओलंपियाड (आईएमओ)
वे छात्र जो गणित विषय में दूसरों से आगे, अपना मुकाम तलाश रहे हैं, उनक ो आईएमओ आजमाइशों का भरापूरा मंच देता है..
इंटरनेशनल मथमेटिक्स ओलंपियाड, गणित विषय की असाधारण प्रतिभाओं को मुकम्मल प्लेटफॉर्म देता है। यहां न केवल स्कूल लेवल पर गणितीय प्रतिभाओं की पहचान क ी जाती है,बल्कि उन्हें इस दिशा में बढने के लिए प्रोत्साहित भी किया जाता है।
 
कहां से हुई शुरुआत -1959 में रोमानिया से शुरू हुआ आइएमओ का सफर आज स्कूल स्तर पर दुनियाभर की गणितीय प्रतिभाओं को उनकी मंजिल दे रहा है। इस प्रतियोगिता की पूरी दुनिया में एक खास पहचान है। इसमें हिस्सा लेना ही एक विशिष्ट उपलब्धि मानी जाती है और महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सफलता की गारंटी भी।
 
सिलेबस का ऊंचा स्तर - दरअसल इस परीक्षा के आयोजन का मतलब दि बेस्ट का चयन है। ऐसे में यहां सिलेबस निर्धारण के मापदंड काफी ऊंचे होते हैं। इसमें अमूमन अलजेब्रा, ज्योमेट्री, नंबर थ्योरी, कैलकुलस से जुडे वे सवाल शामिल हैं, जो अमूमन उच्चस्तरीय प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं।
 
कडी है चयन प्रक्रिया - विभिन्न देशों के प्रतियोगी मैथ्स से संबंधित विभिन्न तरह की परीक्षाओं को पास करने के बाद यहां आते हैं। इस कारण यहां चयन के मापदंड काफी ऊंचे हैं। शायद इसी के चलते यहां जगह बनाना काफी कठिन है। अगर भारत की बात करें, तो इस परीक्षा में शामिल होने से पहले आपको इन परीक्षाओं से गुजरना जरूरी होता है-
सर्वप्रथम स्कूल व रीजनल स्तर पर स्कूल स्टूडेंट्स के बीच प्रतियोगी टेस्ट होता है, जिसमें हर रीजन से स्टूडेंट्स चयनित किए जाते हैं।
इन छात्रो को अगले स्तर पर एक और चयन प्रक्रिया से गुजरना पडता है,जिसमें केवल 30 स्टूडेंट्स राष्ट्रीय गणित ओलंपियाड में जगह बना पाते हैं।
क्वालीफाइड छात्रों के लिए होमी भाभा सेंटर फॉर सांइस, मुंबई एक माह का मैथमेटिक्स ट्रेनिंग कैम्प आयोजित करता है। इस अवधि में इन छात्रों को पांच और सेलेक्शन टेस्ट देने होते हैं, जिसके बाद छह छात्र चुने जाते हैं।
 
फायदे कई
यह ठीक है कि अंतरराष्ट्रीय ओलंपियाड में भाग लेना का मौका चुने हुए 6 छात्रों को ही मिलता है। इसका मतलब यह कतईनहीं हैकि नेशनल ओलंपियाड में जगह बनाने वाले छात्र प्रतिभावान नहीं हैं। सरकार अलग-अलग स्तर पर इन छात्रों को स्कॉलरशिप देकर प्रोत्साहित करती है।
 
मिलता डायरेक्ट एडमिशन - आईएएमओ क्वालीफाई करने वाले छात्रों को, चेन्नईमैथमेटिकल इंस्टीट्यूट में बीएससी, मैथमेटिक्स कोर्स में सीधा प्रवेश मिलता है। इसी तरह 2008 से इन छात्रों को इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीट्यूट, बी-स्टेट, बी-मैथ्स जैसे कोर्सो में बगैर रिटन दिए सीधे इंटरव्यू में भाग लेने की सहूलियत मिल रही है।
 
अहम है वित्तीय मदद - राष्ट्रीय ओलंपियाड में क्वालीफाइड स्टूडेंट्स को स्कॉलरशिप के भी फायदे मिलते हैं। इसमें वे छात्र जो गणित के क्षेत्र में ही रह कर आगे की पढाई जारी रखते हैं, को नेशनल बोर्ड फॉर हायर एजूकेशन (एनबीएचएम) प्रति माह 2500 रुपए छात्रवृत्ति ऑफर करती है। अंतरराष्ट्रीय ओलंपियाड में गोल्ड, सिल्वर, ब्रांज मेडल जीतने वाली टीम के सदस्यों को एनबीएचएम, निजी क्षेत्र पुरस्कार व अन्य सुविधाएं देती हैं।
जेआरसी टीम

Monday, January 2, 2012



आने वाले कल की ¨हिंदी 
¨हिंदी  को राजभाषा बने जाने कितने दशक बीत गए हैं मगर नौ दिन चले अढाई कोस जैसी भी स्थिति नहीं दिखाई देती। फिल्मों और संचार माध्यमों पर छाई रहने के बावजूद रोजगार के बाजार में उसकी पूछ नहीं के बराबर है। हर ओर अंग्रेजी का दबदबा कायम है उस पर भूमंडलीकरण और कम्प्यूटर संजाल ने और मुश्किलें पैदा की हैं। ऐसे में सवाल उठता है, कैसा होगा आने वाले दशकों में हिन्दी का स्वरूप? इसका जवाब दे रहे हैं साहित्य जगत के कुछ धुरंधर-


नहीं रुकेगा हिंदी का विकास: गौरव सोलंकी [युवा लेखक]
इंटरनेट और मोबाइल के आने से शुरुआती दौर में ऐसा जरूर लगा था कि हिंदी के लिए खतरा है जब कंप्यूटर या मोबाइल पर हिंदी लिखना काफी मुश्किल था और बहुत कम लोग इंटरनेट पर हिंदी लिखते थे। इससे रोमन में हिंदी लिखने को भी बढावा मिला। लेकिन जब यूनिकोड आया और हिंदी में टाइप करना काफी आसान हो गया तो धीरे-धीरे इंटरनेट पर हिंदी बढने लगी। अब हिंदी के दो रूप इंटरनेट पर मिलते हैं। कुछ लोग उसे रोमन में लिखते हैं, लेकिन हिंदी के साहित्य से जुडे लोग देवनागरी में ही।

मुझे संकट उतना नहीं लगता। खासकर जब आप हिंदी की वेबसाइटों और ब्लॉगों की बढती संख्या देखें। यह खतरा तब महसूस किया जा रहा था जब भारत में आईटी वाले लोग ही इंटरनेट के यूजर थे। वे भला हिंदी का कितना इस्तेमाल कर सकते थे और उन्हें देखकर कोई अनुमान लगाना गलत भी है। जैसे-जैसे किसी देश के आम आदमी तक तकनीक पहुंचती है, वह उसके हिसाब से ढलती जाती है। हिंदी बोलने-पढने वाले कस्बों-गांवों में तो अब भी नेट का पहुंचना बाकी है और इसके बाद देखिए कि हिंदी कितना ज्यादा दिखाई देती है। यह ऐसा ही होगा जैसे केबल गांवों में पहुंचा तो टीवी के धारावाहिक भी उनकी कहानियां कहने लगे।

मैं अपने पिछले छ:-सात सालों के अनुभव से बता सकता हूं कि हिंदी इंटरनेट पर कई गुना बढी है और 2020 तक यह और कई गुना बढ जाएगी। मोबाइल पर तो वह रोमन में भी लिखी जा रही है लेकिन कंप्यूटर पर दोनों तरह से। जहां तक साहित्य पर संकट का सवाल है, उसका तकनीक की बजाय यह कारण कहीं ज्यादा बडा है कि पूरे विश्व में ही किताबों का पढना कम होता जा रहा है और वैसे भी भारत जैसे विकासशील देश में हमेशा उस भाषा की तरफ ही लोग भागेंगे जो रोजगार दिलाएगी।


संकट में है हिंदी का अस्तित्व- मृदुला गर्ग [वरिष्ठ लेखिका]
भाषा केवल आपसी संवाद का माध्यम नहीं बल्कि किसी देश-समाज के इतिहास, सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक होती है। हिंदी भाषा के अस्तित्व के लिए जो संकट उत्पन्न हुआ है, उसकी प्रमुख वजह यह है कि न ही हमारी युवा पीढी को भाषा का संस्कार दिया गया और न ही बच्चों को यह संस्कार दिया जा रहा है। अत: इसके लिए युवा पीढी या इंटरनेट-मोबाइल को दोष देना उचित नहीं है। मैं पिछले 50 वर्षो से देख रही हूं कि हिंदी में अंग्रेजी को बडी शान से मिलाया जा रहा है। दरअसल शुरुआत से ही यह धारणा हमारे समाज में बैठ गई है कि अंग्रेजी बोलने लिखने और पढने से औकात बढ जाती है।

हिंदी तो मामूली लोगों की भाषा है। इसमें कोई विशिष्टता नहीं है। यही वजह है कि अंग्रेजी को पैबंद की तरह हिंदी में लगाकर बोलने और लिखने का चलन बढने लगा। यह सही है कि दूसरी भाषा के शब्द आने से मूल भाषा का संवर्धन होता है लेकिन उसे लय के साथ आना चाहिए। मूल भाषा में घुल-मिल जाना चाहिए। आज जब हम हिंदी को देखते हैं तो साफ हो जाता है कि इसमें अंग्रेजी का संक्रमण, उसके विकास या संवर्धन के लिए नहीं बल्कि अपने स्टेटस को बनाए रखने और हमारी आलसी प्रवृत्ति की वजह से हो रहा है।

जहां तक साहित्यिक भाषा का प्रश्न है तो शहरी रचनाकार ऐसी पैबंद लगी भाषा का अधिक प्रयोग कर रहे हैं। ऐसे में हिंदी को अंधकारमय भविष्य से उबारने के लिए केवल हिंदी दिवस मना लेना पर्याप्त नहीं होगा। बल्कि इसके प्रति सम्मान का भाव मन में पैदा करना होगा। हमें यह भी याद रखना होगा कि भाषा के खोने से संवेदन शून्यता बढेगी। और संवेदनशील होना मनुष्य होने की पहली शर्त होती है।


कोई खतरा नहीं है हिंदी के लिए: रवीन्द्र कालिया [वरिष्ठ कथाकार और संपादक]
इंटरनेट-मोबाइल के बढते चलन से हिंदी भाषा का जो रूप बदल रहा है, जिसे युवा पीढी तेजी से अपना रही है, उसे मैं भाषा के विकास की सहज प्रक्रिया मानता हूं। मेरा स्पष्ट मानना है कि बहुत शुद्धतावादी होने से भाषा का विकास सीमित रह जाता है। जब अंग्रेजी के अखबारों में हिंदी के शब्द मिल सकते हैं तो हिंदी के शब्दों में अंग्रेजी का संक्रमण गलत कैसे हो गया। अंग्रेजी शब्दों के आगमन से या सहज-सरल अभिव्यक्ति के लिए थोडा रूप परिवर्तन की वजह से हिंदी के अस्तित्व को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं है।

हिंदी के समाचार पत्रों और पुस्तकों की रीडरशिप लगातार बढ रही है। इससे सिद्ध होता है कि हिंदी पढने और समझने वाले लोगों की संख्या लगातार बढती जा रही है। ऐसे में अंग्रेजी के जुडने से हिंदी अवमूल्यित हो रही है, ऐसा सोचना गलत है। भाषा के शुद्धीकरण की चिंता व्याकरणविदों को करनी चाहिए, आम लोगों या पाठकों को इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए।

किसी भी भाषा में दूसरी भाषा के शब्द आने से उसका विकास होता है। अब चेन्नई में मद्रासी हिंदी, महाराष्ट्र में मराठी हिंदी बोली जाए तो हम चिंतित हो जाएं कि हिंदी बिगड रही है तो ऐसा सोचना पूरी तरह गलत है। बल्कि हमें संतोष करना चाहिए कि हिंदी की स्वीकृति लगातार बढ रही है। समय और आवश्यकतानुसार भाषा में परिवर्तन न होने पर उसका विकास सीमित रह जाता है। आने वाले वर्षो में हिंदी के विकास को लेकर मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं कि इसका अंतरराष्ट्रीयकरण भी होगा। हिंदी के विकास के लिए यह बहुत शुभ लक्षण है कि इसे अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति मिल रही है।


उ”वल है हिंदी का भविष्य: महेश भारद्वाज [युवा प्रकाशक]
यह सही है कि इंटरनेट और मोबाइल के आने से हिंदी का स्वरूप बदला है। विशेष रूप से युवा पीढी ने हिंदी भाषा में अपनी सुविधानुसार फेरबदल किया है, लेकिन इसे मैं सहज, स्वाभाविक और भाषा के विकास के लिहाज से सकारात्मक रूप में देखता हूं। आज की पीढी [चाहे वो साहित्य से जुडी हो या आम जीवन से] के लिए प्रभावी और सहज अभिव्यक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण है, बनिस्पत पांडित्यपूर्ण और अलंकारिक भाषा के। इसीलिए यह पीढी लेखन और जीवन में ऐसी भाषा के प्रयोग से परहेज नहीं करती है।

अगर पिछली पीढी के साहित्यकार ऐसा सोचते हैं कि अंग्रेजी शब्दों के आने से या सहज अभिव्यक्ति के लिए स्वरूप में थोडा परिवर्तन होने से हिंदी भाषा पर संकट आ जाएगा, तो इसे मैं पीढियों की विचारधारा में अंतर मानता हूं। मैं उन लोगों से यह पूछना चाहूंगा कि पहले जब हिंदी भाषा में उर्दू, फारसी, और दूसरी भाषाओं के शब्द आते थे, तब ये सवाल क्यों नहीं उठाया गया?

मैं स्पष्ट रूप से मानता हूं कि हिंदी भाषा के अस्तित्व पर किसी प्रकार का कोई संकट नहीं है। देश में ही नहीं विदेशों में भी हिंदी के प्रति लोगों में प्रेम बढ रहा है। इसके अस्तित्व को लोग स्वीकार कर रहे हैं। इस दिशा में होने वाले किसी भी परिवर्तन को मैं शुभ लक्षण मानता हूं क्योंकि भाषा वही अच्छी होती है, जो सरलता से और प्रभावी ढंग से अपने लक्ष्य तक कम्युनिकेट हो सके। इस लिहाज से मैं हिंदी के भविष्य को बहुत उ”वल मानता हूं।
[प्रस्तुति-विभु श्रीवास्तव] ( दैनिक जागरण )