Atreya


Wednesday, September 29, 2010

भारतीयों की थाली को लुभा रहा है आर्गेनिक फूड

नई दिल्ली।

Story Update : Friday, October 08, 2010    12:59 AM














आमतौर पर पश्चिमी देशों के भोजन का हिस्सा माने जानेवाला ‘महंगा’ आर्गेनिक फूड अब ‘सेहतपसंद’ भारतीयों की थाली का भी हिस्सा बनने लगा है। कुछ साल पहले तक देश में जैविक खेती के जरिये तैयार उत्पादों का सिर्फ निर्यात होता था, पर आज इनका एक अच्छा खासा घरेलू बाजार विकसित हो चुका है, जो तेजी से बढ़ रहा है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2012 तक देश में आर्गेनिक उत्पादों का कुल बाजार बढ़कर 4,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। इंटरनेशनल कंपिटेंस सेंटर फॉर आर्गेनिक एग्रीकल्चर, (आईसीसीओए) बेंगलूर के कार्यकारी निदेशक मनोज मेनन ने कहा कि आज आर्गेनिक उत्पाद सिर्फ निर्यात तक सीमित नहीं रह गए हैं। इसका घरेलू बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है, हालांकि आर्गेनिक उत्पादों के साथ बड़ी दिक्कत इनका कमजोर विपणन नेटवर्क है। सभी दुकानों पर आर्गेनिक उत्पाद नहीं बिकते हैं। देश में फल-सब्जियों से लेकर चावल, गेहूं, चीनी और सभी प्रकार के मसालों सहित 300 से अधिक आर्गेनिक उत्पादों का उत्पादन हो रहा है।

आईसीसीओए तथा कृषि मंत्रालय के तहत आने वाले नेशनल सेंटर फॉर आर्गेनिक फार्मिंग (एनसीओएफ) के अनुमान के अनुसार 2012 तक देश में आर्गेनिक उत्पादों का कुल बाजार कई गुना बढ़कर 4,000 करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा। इसमें से 2,500 करोड़ रुपये का निर्यात और 1,500 करोड़ रुपये का घरेलू बाजार होगा। फिलहाल आर्गेनिक उत्पादों का बाजार 700 से 800 करोड़ रुपये का है। इसमें से 150 से 200 करोड़ रुपये का घरेलू बाजार है। उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार आर्गेनिक उत्पाद सामान्य खाद्य पदार्थों से 15 से 20 फीसदी महंगे होते हैं। इसके बावजूद आज इसका बाजार तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि आर्गेनिक होने के साथ-साथ इनमें मिलावट की गुंजाइश भी नहीं होती। कुछ साल पहले लोग सिर्फ बच्चों के लिए ही आर्गेनिक उत्पाद खरीदते थे।

आर्गेनिक खेती खेती की वह प्रणाली है जिसमें कीटनाशक और रासायनिक खाद आदि का इस्तेमाल नहीं होता है। जैविक खेती के तहत कृषि भूमि वर्ष 2012 तक 20 लाख हेक्टेयर पर पहुंच जाने का अनुमान है, जबकि 2008 में इसके तहत मात्र 8.65 लाख हेक्टेयर भूमि ही थी। इस समय जैविक खेती के तहत 12 लाख हेक्टेयर भूमि है। मोररका आर्गेनिक फूड्स के निदेशक मुकेश गुप्ता ने कहा कि यह धारणा सही नहीं है कि आर्गेनिक उत्पाद बहुत ज्यादा महंगे होते हैं। यदि इसके स्वास्थ्य के प्रति फायदे को देखा जाए, तो आपको दाम ज्यादा नहीं लगेगा। यदि किसी परिवार का किचन का बजट मासिक 6,000 रपये है, तो वह इसमें 1,000 से 1,500 रुपये की बढ़ोतरी कर आसानी से आर्गेनिक की ओर शिफ्ट कर सकता है।

आईसीओओए के कार्यकारी निदेशक मेनन ने कहा कि आर्गेनिक उत्पादों के विपणन नेटवर्क को बढ़ाने का लगातार प्रयास किया जा रहा है। स्पेंसर्स, सफल जैसी कुछ रिटेल चेन ने अब अपने शेल्फ पर आर्गेनिक उत्पादों को रखने की पहल की है, पर और ज्यादा रिटेल शृंखलाओं को इसके लिए आगे आना चाहिए। मोररका आर्गेनिक के मुकेश गुप्ता का कहना है कि आज की तारीख में कई फूड कोर्ट और रेस्तराओं ने अपने मेन्यू में आर्गेनिक उत्पादों को स्थान देना शुरू किया है। ( अमर उजाला )

 

 

सुरेखा शर्मा
 

शिक्षक व शिष्य राष्ट्र की रीढ़ कहलाते हैं। वही समाज की पूर्ण दिशा तय करते हैं। ऐसे में जाहिर है इस विशिष्टï वर्ग से देश व समाज को अपेक्षाएं भी होंगी। पर आज फिर हमारे समक्ष एक यक्ष प्रश्न खड़ा है। क्या शिक्षक वर्ग समाज की अपेक्षाओं पर खरा उतर रहा है? क्या वह अपने शिष्यों का सही मार्गदर्शन कर रहा है। जिस पर चलकर वह जीवन की बुलंदियों को छू सके। आज ज्ञान देना ही शिक्षक का एकमात्र कार्य नहीं रहा। आज ज्ञान तो उसे अनेक साधनों से अर्थात्, कंप्यूटर से, इंटरनेट से, गाइडों से न जाने कितने अन्य साधनों से प्राप्त कर लेता है। आवश्यकता है तो उसे चारित्रिक ज्ञान की। जिस नींव पर उसको संपूर्ण जीवन के भवन को खड़ा करना है।

डा. राधाकृष्णन जी ने शिक्षकों के ऊपर देश के भविष्य की जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि गुरु-शिष्य का संबंध अनंत है जो युगों से चलता आ रहा है तथा चलता रहेगा। गुरु ही उत्तम नागरिक तैयार कर सकता है। लक्ष्य तक पहुंचने में गुरु ही सहायक बनता है। हमारे संत कवियों ने गुरु को ईश्वर से भी बढ़कर माना है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। कोई भी सुन्दर भवन स्कूल या पाठशाला नहीं कहला सकता, जब तक उसमें शिक्षक व शिष्य न हो। एक का कार्य है शिक्षा देना व दूसरे का कार्य है शिक्षा लेना अर्थात् शिक्षक व शिक्षार्थी। इसलिए उस महान शिक्षक प्रणेता के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप ही यह दिवस ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाने की परंपरा चली हुई है।

आज के  बदलते परिवेश में शिक्षक वर्ग गौण होता जा रहा है। इसके पीछे भी यदि सोचा जाए तो इसका जिम्मेवार भी स्वयं शिक्षक ही है। शिक्षकों के लिए छात्रों की कसौटी पर खरा उतरना तथा अपना चरित्र पारदर्शी रखना अति आवश्यक है। जो कि आज संदिग्धावस्था में है। आज हमें आए दिन समाचार-पत्रों में पढऩे को मिल जाता है कि अमुक शिक्षक ने अपनी छात्रा के साथ अभद्र व्यवहार किया तो संपूर्ण शिक्षक वर्ग का सिर शर्म से झुक जाता है। उत्पीडऩ की शिकार छात्राएं आत्महत्या तक का कदम उठा लेती हैं? स्कूल के गेट पर ताले जड़ दिए जाते  हैं। शिक्षक की शारीरिक प्रताडऩा से कई बच्चे जिंदगी से भी हाथ धो बैठे।

एक ज्वलंत प्रश्न यह भी उठ रहा है कि आज का छात्र वर्ग अनुशासनहीन होता जा रहा है। यह सत्य भी है, पर इसका दायित्व किस पर है? हम प्राय: सारा दोष छात्रवर्ग पर मढ़ देते हैं। व्यक्तिगत रूप से हमारी राय है छात्रवर्ग तो दोषी है ही पर अनुशासनहीनता  की इस व्यापक प्रवृत्ति के पीछे मूल कारण भी कम नहीं है। शिक्षक वर्ग व अभिभावक वर्ग भी कम दोषी नहीं है। एक समय वह भी था कि जब माता-पिता अपने बच्चों को गुरु के हाथ में सौंपकर निश्चिंत हो जाते थे। गुरु ही उन्हें जीवन की राह पर चलना सिखाते थे। यदि प्राचीन भारतीय परंपरानुसार आज के शिक्षक ने लोभ एवं अहंकार के फंदों से बचकर नि:स्वार्थ और लगन से छात्रों  का मार्ग प्रशस्त करने में रत रहता तो आज छात्र उसके इशारों पर नाचता होता। फिर वह कोई भी कारण उसे अपने मार्ग से हटने न देता।

लेकिन हम इतना तो अवश्य ही विश्वास के साथ कह सकते हैं कि भारतीय छात्रों के रक्त में आज भी अपनी सभ्यता व संस्कृति के बीज पूरी तरह नष्टï नहीं हुए हैं। यदि आज भी शिक्षक वर्ग अपना आत्मविश्लेषण करके अपने पुनीत कर्तव्यों के प्रति सच्चाई और ईमानदारी बरतें तो अनुशासनहीनता जैसी समस्या का समाधान सरलता से प्राप्त कर सकते हैं।

यदि हम चाहते हैं कि हमारा देश वास्तविक रूप से उन्नति करे और शक्तिशाली राष्ट्र बने तो हमें भारतीय शिक्षक को उसके स्थान पर प्रतिस्थापित करना होगा। उसके लिए समाज को पुन: गुरु का सम्मान करना होगा। जब अभिभावक वर्ग शिक्षक समाज का सम्मान करेगा तो बच्चे कहां पीछे हटेंगे? बच्चा समाज व घर से ही तो सीखता है। अध्यापक वर्ग चाहता है उसका सम्मान हो तथा पुन: गुरु-शिष्य परंपरा का आदर हो तो उसे भी समझना होगा कि केवल शिक्षा देना व मात्र नौकरी करना ही उसका उद्देश्य नहीं अपितु पूर्ण समर्पण  की भावना लेकर ही विद्यालय में प्रवेश करना होगा। सर्वप्रथम अपने चारित्रिक बल को सुदृढ़ करना होगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब समाज में शिक्षक का सम्मान तो दूर उनसे शिक्षा ग्रहण करना भी अपनी हीनता समझा जाएगा। इसके लिए आवश्यक है ‘समर्पण’। उसे अपने शिष्य में सादगी, ईमानदारी, अनुशासन व आत्मविश्वास जैसे गुणों को विकसित करना होगा। जिससे समाज व राष्ट्र की उस पर श्रद्धा व विश्वास बढ़ेगा। साथ ही हमें यह संकल्प भी लेना होगा कि आज जितनी अवमानना शिक्षक वर्ग की हो रही है तथा जितना खिलवाड़ व परिवर्तन शिक्षा क्षेत्र में हो रहा  है उसे समाप्त करना होगा तभी राष्ट्र वास्तव में प्रगति की राह पर अग्रसर होगा और कबीर जी का दोहा सार्थक होगा-   
‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय,
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो मिलाए।’  

 

 

 

पहली से आठवीं तक मुफ्त पढ़ाई

Posted On September - 29 - 2010

ट्यूशन फीस के बाद अब हरियाणा के सरकारी स्कूलों में फंड भी किये माफ

22 लाख से अधिक बच्चों को होगा योजना से लाभ

दिनेश भारद्वाज/ प्रतिनिधि
 
चंडीगढ़, 28 सितम्बर। हरियाणा के बच्चे-बच्चे को शिक्षित करने की योजना के दृष्टिगत प्रदेश सरकार ने एक अहम फैसला लिया है। हरियाणा के सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों की ट्यूशन फीस माफी के बाद अब राज्य सरकार ने इनसे लिये जाने वाले आधा दर्जन से अधिक फंडों को भी माफ कर दिया है। सरकार के इस फैसले के बाद विद्यार्थियों को आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई बिल्कुल मुफ्त कराई जायेगी। यहां बता दें कि इससे पूर्व सरकार की ओर से इन स्कूलों के विद्यार्थियों को किताबें व वर्दी आदि भी मुफ्त ही मुहैया कराई जा रही है।

शिक्षा विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक विभाग के इस प्रस्ताव को शिक्षा मंत्री की मंजूरी के बाद मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ओर से भी हरी झंडी दे दी गई है। यहां बता दें कि गत वर्ष हरियाणा में पहली से आठवीं कक्षा तक के गरीब विद्यार्थियों, अनुसूचित जाति के बच्चों एवं लड़कियों को मुफ्त किताबें-कापियां एवं वर्दी देने का फैसला लिया गया था। इसी दौरान सरकार ने सरकारी स्कूलों में आठवीं कक्षा तक ली जाने वाली ट्यूशन फीस को भी माफ कर दिया था।

अब सरकार ने फैसला किया है कि प्रदेश के हर बच्चे को शिक्षित बनाने के लिए उनसे लिये जाने वाले फंड भी नहीं लिये जाएंगे। इन फंडों में मुख्यत:, चाइल्ड वेलफेयर फंड, हेल्थ फंड, साइंस फंड, बिल्डिंग फंड, एक्जॉम फंड, एजीएफ तथा रेडक्रास फंड आदि शामिल हैं। सरकार के इस फैसले से हरियाणा के लगभग 22 लाख विद्यार्थियों को फायदा होगा। प्रदेश में 9371 प्राइमरी तथा करीब 2300 माध्यमिक स्कूल चल रहे हैं।

सूत्रों का कहना है कि स्कूलों से बच्चों के ड्रॉप आउट की बढ़ती संख्या को रोकने के मद्देनज़र यह फैसला लिया गया है। आमतौर पर गांवों एवं शहरों में रहने वाले गरीब लोग अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाते। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा सभी को शिक्षा का अधिकार अधिनियम के बाद सरकार ने अपनी नीतियों में और भी बदलाव किया है। माना जा रहा है कि आठवीं कक्षा तक पूरी तरह से मुफ्त शिक्षा का फैसला जहां सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या में इजाफा करेगा, वहीं ड्रॉप आउट का आंकड़ा भी कम होगा।

हरियाणा सरकार सभी बच्चों को शिक्षित करने के प्रति वचनबद्ध है। पहली से आठवीं तक मुफ्त शिक्षा और किताबें-कापियां तथा वर्दी देने के अलावा इससे आगे की पढ़ाई के लिए भी सरकार द्वारा व्यवस्था की गई है। अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों को जहां छात्रवृत्तियां दी जा रही हैं, वहीं गरीब एवं पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों के लिए भी सरकार द्वारा योजनाएं चलाई गई हैं। हमारी कोशिश है कि प्रदेश का बच्चा-बच्चा पढ़ा-लिखा हो।  कम से कम पैसे के अभाव में कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के निर्देशों के बाद ही विभाग ने यह फैसला लिया है। मुख्यमंत्री जी का मानना है कि वही प्रदेश और देश तरक्की करेगा, जो शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति करेगा।
-गीता भुक्कल, शिक्षा मंत्री, हरियाणा।  ( दैनिक ट्रिब्यून )

No comments:

Post a Comment